विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि भारत और चीन अपने संबंधों को लेकर ‘‘विशेषतौर पर खराब दौर” से गुजर रहे हैं क्योंकि बीजिंग ने समझौतों का उल्लंघन करते हुए कुछ ऐसी गतिविधियां कीं जिनके पीछे उसके पास अब तक ‘‘विश्वसनीय स्पष्टीकरण” नहीं है। विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि चीन के नेतृत्व को इस बात का जवाब देना चाहिए कि द्विपक्षीय संबंधों को वे किस ओर ले जाना चाहते हैं। भारत ने चीन को बता दिया है कि शांति और स्थिरता बहाली के लिए पूर्वी लद्दाख से सैनिकों को वापस बुलाने की प्रक्रिया में प्रगति जरूरी है और संपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने का यही आधार है।
ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में 16 सितंबर को अपने चीनी समकक्ष वांग यी के साथ मुलाकात में जयशंकर ने इस बात पर जोर दिया था कि दोनों पक्षों को पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अन्य बचे विवाद के मुद्दों को जल्द हल करने की दिशा में काम करना चाहिए और इस दौरान द्विपक्षीय समझौतों और प्रोटोकॉल का पूरी तरह से पालन होना चाहिए।
यहां ब्लूमबर्ग न्यू इकोनॉमिक फोरम में ‘‘वृहद सत्ता प्रतिस्पर्धा: उभरती हुई विश्व व्यवस्था” विषय पर आयोजित गोष्ठी में एक सवाल के जवाब में जयशंकर ने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि चीन को इस बारे में कोई संदेह है कि हमारे संबंधों में हम किस मुकाम पर खड़े हैं और क्या गड़बड़ है। मेरे समकक्ष वांग यी के साथ मेरी कई बार मुलाकात हुई हैं। जैसा कि आपने भी यह महसूस किया होगा कि मैं बिलकुल स्पष्ट बात करता हूं, अत: समझा जा सकता है कि स्पष्टवादिता की कोई कमी नहीं है। यदि वे इसे सुनना चाहते हैं तो मुझे पूरा भरोसा है कि उन्होंने सुना होगा।”
चीन के साथ पूर्वी लद्दाख में सीमा पर गतिरोध के संदर्भ में विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘हम, हमारे संबंधों में विशेषतौर पर खराब दौर से गुजर रहे हैं क्योंकि उन्होंने समझौतों का उल्लंघन करते हुए कुछ ऐसे कदम उठाए हैं जिनके बारे में उनके पास अब तक ऐसा स्पष्टीकरण नहीं है जिस पर भरोसा किया जा सके। यह इस बारे में संकेत देता है कि यह सोचा जाना चाहिए कि वे हमारे संबंधों को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं लेकिन इसका जवाब उन्हें देना है।” भारत और चीन की सेनाओं के बीच पूर्वी लद्दाख में सीमा पर गतिरोध के हालात बीते वर्ष पांच मई को बने थे।
पैंगांग झील से लगते इलाकों में दोनों के बीच हिंसक संघर्ष भी हुआ था और दोनों देशों ने अपने हजारों सैनिक और हथियार वहां तैनात किए थे। पिछले वर्ष 15 जून को गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद तनाव और भी बढ़ गया था। हालांकि कई दौर की सैन्य और राजनयिक वार्ता के बाद दोनों पक्ष फरवरी में पैंगांग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों से तथा अगस्त में गोगरा इलाके से अपने सैनिकों को वापस बुलाने के लिए राजी हो गए। सैन्य वार्ता पिछली बार 10 अक्टूबर को हुई थी जो बेनतीजा रही। इसी बीच, भारत और चीन ने पूर्वी लद्दाख में संघर्ष के अन्य क्षेत्रों से सैनिकों को पूरी तरह से पीछे हटाने के उद्देश्य को हासिल करने के लिए जल्द ही किसी तारीख पर 14वें दौर की सैन्य वार्ता कराने पर बृहस्पतिवार को सहमति व्यक्त की ।
जयशंकर ने इस धारणा को ‘‘हास्यास्पद” करार देते हुए खारिज कर दिया कि अमेरिका रणनीतिक रूप से सिकुड़ रहा है और शक्ति के वैश्विक पुनर्संतुलन के बीच अन्य के लिए स्थान बना रहा है। उन्होंने कहा कि अमेरिका आज एक कहीं अधिक लचीला साझेदार है, वह अतीत की तुलना में विचारों, सुझावों और कार्य व्यवस्थाओं का अधिक स्वागत करता है। उन्होंने सत्र के मध्यस्थ के एक प्रश्न के उत्तर में कहा, ‘‘इसे अमेरिका का कमजोर होना नहीं समझें। मुझे लगता है कि ऐसा सोचना हास्यास्पद है।” इस सत्र में अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन और ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने भी भाग लिया।
जयशंकर ने कहा, ‘‘यह स्पष्ट है कि चीन अपना विस्तार कर रहा है, लेकिन चीन की प्रकृति, जिस तरीके से उसका प्रभाव बढ़ रहा है, वह बहुत अलग है और हमारे सामने ऐसी स्थिति नहीं है, जहां चीन अनिवार्य रूप से अमेरिका का स्थान ले ले। चीन और अमेरिका के बारे में सोचना स्वाभाविक है।” जयशंकर ने क्वाड(चार देशों के संगठन) का उदाहरण देते हुए कहा कि कुछ देश समान चिंताओं, मुद्दों और हितों पर साथ आ रहे हैं।
क्वाड चार देशों, भारत, जापान,अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया का गठबंधन है और इसका गठन संसाधन संपन्न हिंद प्रशांत क्षेत्र के अहम समुद्री मार्गों को किसी के भी प्रभाव से दूर रखने के लिए नयी रणनीति बनाने के लिए हुआ है। उन्होंने कहा कि अमेरिक अतीत के मुकाबले अधिक लचीला,विभिन्न सुझावों का स्वागत करने वाला और कार्यकारी समझौते करने वाला साझेदार है।
जयशंकर ने कहा,‘‘ मेरा मानना है कि यह एक बेहद अगर तरह की दुनिया को प्रदर्शित करता है। हम ऐसी दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं,जिसे हम 1992के बाद से असली बदलाव कह सकते हैं।” दुनिया किस प्रकार बदल रही है,इस संबंध में पूछे जाने पर विदेश मंत्री ने कहा,‘‘ यह यकीनन एक ध्रुवीय नहीं है और न ही दो ध्रुवीय है। कई पक्ष हैं। पुनर्संतुलन को लेकर,देशों के साथ काम करने को लेकर यदि देखा जाए तो यह बहुध्रुवीय काम है।”
जयशंकर ने कहा कि भारत यह देखेगा कि उसके हितों की सर्वाधिक रक्षा कैसे हो सकती है और आज के वक्त में अमेरिका के साथ अधिक निकट संबंधों से,यूरोप के साथ अधिक मजबूत संबंधों से और ब्रिटेन के साथ इसके अलावा आसियान देशों के साथ संबंधों में पुन: ऊर्जा भर कर और खासतौर पर सिंगापुर के साथ ये हित यकीनन सध सकते हैं ।