बेहद विपरिति हालातों में आखिरकार ओलिंपिक का समापन हुआ। खाली स्टेडियम में बिना फैंस के बीच ऐथलीट पसीना बहाते रहे। अपने देश के लिए मेडल लाते रहे। भारत के लिए खेलों का यह महाकुंभ बेहद खास रहा। हमारे खिलाड़ियों ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दिखाया। सात मेडल के साथ यह पदकों के लिहाज से हिंदुस्तान का बेस्ट परफॉर्मेंस भी था। भारत 48वें पायदान पर रहा। पदक तालिका में 113 मेडल के साथ अमेरिका टॉप तो दूसरे पोजिशन पर खड़े चीन ने 88 पदक हासिल किए। मगर क्या आपको पता है हमारे पड़ोसी मुल्कों ने ओलिंपिक में कैसा खेल दिखाया?
पाकिस्तान का खाता भी नहीं खुला : साल 1947 में जब भारत आजाद हुआ तब पाकिस्तान अलग मुल्क बना। एक-साथ दोनों ही देशों को विकास की सीढ़ियां चढ़नी थी। मगर तोक्यो में पाकिस्तान का खाता तक नहीं खुल पाया। हालांकि स्वर्णवीर नीरज चोपड़ा के साथ फाइनल में पाकिस्तानी एथलीट अरशद नदीम भी पहुंचे थे। अपनी देश की ओर से फाइनल में पहुंचने वाले वह पहले पाकिस्तानी थे।
तीन दशक से मेडल नहीं जीत पाया पाकिस्तान : तोक्यो ओलिंपिक में पाकिस्तान का 22 सदस्यीय दल गया था, जिसमें 10 एथलीट और 12 अधिकारी थे। पाकिस्तान लगभग तीन दशकों से पदक जीतने का इंतजार कर रहा है। आखिरी बार 1992 में बार्सिलोना ओलिंपिक में हॉकी में ब्रॉन्ड मेडल आया था। तब पाकिस्तान की टीम तीसरे नंबर पर रही थी। पाकिस्तान के लिए आखिरी व्यक्तिगत मेडल मुक्केबाज हुसैन शाह पदक लाए थे, 1988 के बाद से यह सूखा भी खत्म नहीं हुआ है।
बांग्लादेश और श्रीलंका भी तरसे : बांग्लादेश ने शूटिंग, स्विमिंग, आर्चरी और एथलेटिक्स के कुल छह खिलाड़ियों का दल भेजा था। सब बेरंग लौटे। दूसरी ओर श्रीलंका के स्क्वॉड में नौ खिलाड़़ी थे। यहां भी किसी को कोई सफलता नहीं मिली। ओलिंपिक इतिहास में श्रीलंका के खाते में दो मेडल आए हैं। दोनों ही सिल्वर पदक हैं। दरअसल, 2000 सिडनी ओलिंपिक में महिलाओँ की 400 मीटर हर्डल रेस में सुशांतिक जयसिंघे तीसरे पायदान पर रही थी, लेकिन मरिन जोन्स के डोप टेस्ट में फेल होने के बाद वह ब्रॉन्ज मेडल, सिल्वर में तब्दील हो गया।