अभी तक आपने ‘अंतरिक्ष की रेस’ से लेकर ‘हथियारों की रेस’ के बारे में सुना होगा। लेकिन इन सब के बीच एक रेस सबसे अहम है जिस पर आने वाली मानव सभ्यता का भविष्य निर्भर करेगा। अंतरिक्ष में एक अहम मात्रा में हीलियम-3 का खनन करने वाला पहला देश कौन होगा? जिससे ऐसे न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर्स बनाए जा सकें, जो खतरनाक परमाणु अपशिष्ट और अन्य प्रदूषक पैदा न करते हों।
सीआईए के पूर्व स्पेस एनालिस्ट टिम क्रिसमैन ने कहा कि बाहरी अंतरिक्ष में ऊर्जा और कच्चे माल की असीमित मात्रा मौजूद है। चंद्रमा पर मौजूद हीलियम-3 से लेकर ऐस्टरॉइड पर मौजूद भारी धातुओं और वाष्पशील गैसों को पृथ्वी और अंतरिक्ष के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि चीन अपने विरोधियों और प्रतिस्पर्धियों को नुकसान पहुंचाने के लिए किसी भी संसाधन निश्चित रूप से इस्तेमाल करेगा।
हीलियम-3 की रेस पहले उपग्रह को लॉन्च करने जैसी : उन्होंने दावा किया कि चीन अंतरिक्ष में मौजूद ऊर्जा के भंडार तक पहुंचने और स्पेस माइनिंग के क्षेत्र में एक संभावित ‘क्रांति’ की ओर बढ़ रहा है। आने वाले समय में वह चीन को पीछे छोड़ सकता है। टिम ने हीलियम-3 रेस की तुलना पहले सैटेलाइट को लॉन्च करने की रेस की, जो अमेरिका और रूस के बीच शुरू हुई थी। उन्होंने कहा कि यह एक बड़ी राजनीतिक और कूटनीतिक जीत होगी।
40 टन गैस से एक साल बिजली इस्तेमाल कर सकता है अमेरिका : उन्होंने कहा कि अगर इसे पृथ्वी पर लाया गया तो बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि इसका इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है। यह हमारे लिए नाटकीय बदलाव की संभावना हो सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि हीलियम-3 से पूरी तरह से भरे हुए दो स्पेस शटल कार्गो बे, जिन पर करीब 40 टन गैस भरी हो, ऊर्जा खपत की वर्तमान दर पर अमेरिका को एक साल तक बिजली सप्लाई कर सकते हैं।
10,000 सालों की मांग पूरी हो सकती है पूरी : चाइनीज लूनर एक्सप्लोरेशन प्रोग्राम के मुख्य वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर औयंग ज़ियुआन ने हाल ही में कहा था कि चंद्रमा हीलियम-3 से ‘इतना समृद्ध’ है कि यह ‘मानवता की ऊर्जा की मांग को कम से कम लगभग 10,000 सालों तक के लिए हल कर सकता है।’ चीन में कई प्रमुख संस्थान अब रिसर्च के लिए Chang’e 5 मिशन के चंद्रमा से इकट्ठा की गईं चट्टानों का अध्ययन कर रहे हैं। दिसंबर में यह मिशन चंद्रमा की करीब 1.73 किग्रा सामग्री को पृथ्वी पर लाया था।
पृथ्वी से 100 गुना ज्यादा हीलियम-3 चंद्रमा पर : स्पेस डॉट कॉम की रिपोर्ट के अनुसार 31 नमूनों का पहला बैच जुलाई में 13 चीनी संस्थानों में बांट दिया गया था। बीजिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ यूरेनियम जियोलॉजी के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक शोधकर्ता हुआंग ज़िक्सिन ने बताया था कि रिसर्च का मुख्य उद्देश्य चंद्रमा की मिट्टी में हीलियम -3 की मात्रा की जांच करना है। हीलियम-3 पृथ्वी पर बेहद कम मात्रा में मौजूद है जबकि चंद्रमा पर यह 100 गुना अधिक प्रचुर मात्रा में है।
क्यों इतना खास है ‘स्पेस का खजाना’ हीलियम-3 : वैज्ञानिकों के मुताबिक परमाणु रिएक्टरों में हीलियम-3 के इस्तेमाल से रेडियोएक्टिव कचरा नहीं पैदा होगा। इससे आने वाली कई सदियों तक धरती की ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जा सकेगा। हीलियम-3 पहले से ही धरती पर पैदा होती है लेकिन यह बहुत दुर्लभ है और मंहगी है। अनुमान है कि चंद्रमा पर इसके विशाल भंडार मौजूद हैं। बताया जाता है कि यह भंडार एक मिलियन मीट्रिक टन तक हो सकता है। इस भंडार का केवल एक चौथाई ही धरती पर लाया जा सकता है।
एक विशेषज्ञ का अनुमान है कि एक टन हीलियम-3 की कीमत करीब 5 अरब डॉलर हो सकती है। चंद्रमा से 2,50,000 टन हीलियम-3 लाया जा सकता है जिसकी कीमत कई ट्रिल्यन डॉलर हो सकती है। चीन ने भी इसी साल हीलियम-3 की खोज के लिए अपना चांग ई 4 यान भेजा था। इसी को देखते हुए ही अमेरिका, रूस, जापान और यूरोपीय देश भी अब चंद्रमा पर कदम रखने जा रहे हैं। यही नहीं ऐमजॉन कंपनी के मालिक जेफ बेजोस चंद्रमा पर कॉलोनी बसाने की चाहत रखते हैं।