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February 19, 2025
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‘यूपी में अपने दम पर लडे़ेगी कांग्रेस…’ पिछले गठबंधनों की टीस अभी भी बाकी या फिर दूसरे दलों से नहीं बात?


यूपी की सियासत में पिछले काफी दिनों से चर्चा थी कि आगामी विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस को एक अदद गठबंधन की दरकार है। पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी की पहले प्लेन में अखिलेश यादव से मुलाकात और फिर एयरपोर्ट के वीआईपी लाउंज में आरएलडी चीफ जयंत चौधरी से भेंट की तस्वीरें भी इसी ओर इशारा कर रही थीं।
हालांकि बुलंदशहर में रविवार को एक कार्यक्रम के दौरान प्रियंका ने स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस अकेले दम पर चुनाव लड़ेगी। इस बयान के यह भी मायने निकाले जा रहे हैं कि गठबंधन के लिए कांग्रेस की दूसरे दलों के साथ दाल नहीं गल सकी है। इस बीच प्रियंका गांधी रविवार को नई दिल्ली में बीएसपी सुप्रीमो मायावती की मां के निधन के बाद उनसे मिलने पहुंची थीं और जाते- जाते यह भी कह गईं कि ‘फिर मिलने आऊंगी।’
बुलंदशहर में प्रियंका ने क्या कहा? : बुलंदशहर में कांग्रेस प्रतिज्ञा सम्मेलन- लक्ष्य 2022 कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, ‘मुझे कई लोगों ने कहा कुछ भी करिए इस बार गठबंधन मत करिए। मैं आप लोगों को आश्वासन देना चाहती हूं हम सारी सीटों पर लड़ेंगे, अपने दम पर लड़ेंगे।’ यानी अखिलेश, जयंत और फिर मायावती के साथ तस्वीरों को लेकर गठबंधन की जो अटकलें थी कि फिलहाल प्रियंका ने उसका खंडन कर दिया है।
सपा-RLD के साथ गठबंधन की कोशिश बेकार! : प्रियंका के इस बयान के पीछे कांग्रेस के पिछले गठबंधनों की कड़वी यादें और पार्टी का लगातार गिरता प्रदर्शन भी है। इसी के चलते चाहे सपा हो या आरएलडी, कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए हर कोई हाथ पीछे खींच रहा है। न सिर्फ यूपी बल्कि देश के अधिकतर राज्यों में कांग्रेस खराब दौर से गुजर रही है। 2017 में यूपी चुनाव के नतीजों के बाद 2019 लोकसभा चुनाव, 2020 में बिहार चुनाव और इस साल पश्चिम बंगाल और असम चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन से दूसरे दलों का भी उस पर विश्वास कम हुआ है।
2017 के गठबंधन की टीस अभी भी है : 2017 में यूपी में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था लेकिन नतीजों में कांग्रेस को तो नुकसान हुआ ही, सपा को भी शर्मनाक हार झेलनी पड़ी। इस चुनाव में 298 सीटों पर समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवार उतारे तो 105 सीटें कांग्रेस के खाते में आईं। हालांकि नतीजों में कांग्रेस 10 सीटों के अंदर ही सिमट गई और वोट शेयर को भी बड़ी चोट लगी।
दहाई का आकंड़ा भी न छू पाई थी कांग्रेस : 2017 चुनाव में कांग्रेस को मात्र 7 सीटें हासिल हुई थीं। यानी 98 सीटों पर उसे मात मिली थी। इन नतीजों के साथ यूपी में कांग्रेस पांचवें नंबर की पार्टी बनकर रह गई थी। यहां तक कि अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस) को उससे ज्यादा (12) सीटें मिली थीं। कांग्रेस के साथ गठबंधन से सपा को भी बड़ा नुकसान हुआ था। पहली बार यूपी में पार्टी 100 का आंकड़ा भी न छू पाई थी। 2017 में अखिलेश की सपा को 47 सीटों पर संतोष करना पड़ा था।
चुनाव दर चुनाव कांग्रेस का वोट शेयर गिरा : यूपी में सीटों के साथ ही कांग्रेस का वोट शेयर भी घटता रहा। कांग्रेस को 2012 में 11.5 प्रतिशत वोट और 28 सीटें मिली थीं जबकि 2017 के चुनाव में पार्टी को 6.2 प्रतिशत वोट मिले और सिर्फ 7 सीटों से संतोष करना पड़ा।
89 के बाद से यूपी में कांग्रेस का पतन : 1989 के बाद लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा, कांग्रेस लगातार अपना जनाधार खोती चली आई है। 1989 में कांग्रेस के पास 94 सीट थीं। 1991 में 46 रह गईं। 1993 में तो 28 तो 1996 में 33 सीटें मिलीं। 2002 में 25, 2007 में 22 सीट और 2012 में 28 सीट मिलीं।
बिहार में महागठबंधन की हार का ठीकरा कांग्रेस पर : पिछले साल बिहार में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, आरजेडी और लेफ्ट पार्टियों का गठबंधन था। इस चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन महज 19 में जीत हासिल की थी। जबकि आरजेडी को 75 मिलीं। नतीजा यह हुआ कि 125 सीटों के साथ एनडीए ने बिहार में सरकार बना ली। तब आरजेडी ने हार का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ा था। कई आरजेडी नेताओं का तर्क था कि कांग्रेस बेहतर परफॉर्म करती तो महागठबंधन की सरकार बिहार में बन जाती।
बंगाल और असम में भी मिली करारी हार : न सिर्फ यूपी -बिहार बल्कि इस साल पश्चिम बंगाल और असम में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को गठबंधन का कोई फायदा नहीं मिला। आजादी के बाद से बंगाल में हुए चुनाव में ऐसा पहली बार था कि जब कांग्रेस का कोई विधायक नहीं चुना गया। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस ने वामदलों के साथ गठबंधन में 92 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन एक भी सीट जीतने में सफल नहीं हो पाए। जबकि 2016 के चुनाव में कांग्रेस को 44 सीटें मिली थीं।
बंगाल के असम में हुए विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को AIUDF के साथ गठबंधन का फैसला महंगा साबित पड़ा। कांग्रेस के नेतृत्व में 10 पार्टियों के महाजोत (महागठबंधन) का ऐलान हुआ था लेकिन इस गठबंधन को मात्र 50 सीटें मिलीं। इसमें से कांग्रेस महज 29 सीटें ही जीत पाई। बीजेपी ने एआईयूडीएफ के साथ कांग्रेस के गठबंधन को अपवित्र बताया था जिसके बाद राज्य में ध्रुवीकरण की राजनीति तेज हुई और खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा।

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