बिहार की राजनीति में ‘पीएम मैटेरियल’ शब्द की गूंज फिर सुनाई देने लगी है. दरअसल रविवार को पटना में जेडीयू (JDU) की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पीएम मैटिरियल (PM Material Nitish Kumar) हैं. नीतीश कुमार में पीएम बनने के तमाम गुण मौजूद हैं, हालांकि एनडीए (NDA) में प्रधानमंत्री पद के लिए नरेन्द्र मोदी का ही नाम है लेकिन सवाल पैदा होता है कि आखिर राष्ट्रीय परिषद की बैठक में प्रस्ताव पारित करने के मायने क्या है? जबकि खुद पिछले दिनों नीतीश कुमार ने पीएम मैटेरियल के सवाल पर कहा था कि उनकी कोई ऐसी इच्छा आकांक्षा नहीं है. हम लोगों की इन चीजों में कोई दिलचस्पी नहीं है. राष्ट्रीय परिषद की बैठक के बाद भी सीएम ने मीडिया के सवाल पर मुस्कराते हुए जवाब दिया कि मुझे इसमें कोई रूचि नहीं है. मैं अपना काम करता हूं.
दबाव की राजनीति : जातीय जनगणना और जनसंख्या कानून को लेकर एनडीए में घमासान मचा हुआ है .सब दल अपनी सुविधानुसार राजनीति कर रहे हैं. पिछड़ों के रहनुमा बनने की होड़ लगी है. पिछड़ों के वोट बैंक पर कैसे अपनी पकड़ मजबूत बने, सब दल इसी जुगत में लगे हैं. इसी का नतीजा था कि आपस में घोर विरोधी नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव एक साथ जातीय जनगणना की मांग को लेकर प्रधानमंत्री से पिछले दिनों दिल्ली में मिले.
क्या दिखाने की कोशिश : बीजेपी को छोड़कर एनडीए के घटक दल जातीय जनगणना के पक्ष में है. जनसंख्या कानून को लेकर भी बीजेपी और जेडीयू के सुर अलग-अलग हैं. हाल के दिनों में कई मुद्दों पर जेडीयू बीजेपी से अलग राय रख कर अपने वजूद को भरपूर तरीके से बताने की कोशिश करती रही है. राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि पीएम मैटेरियल का यह प्रस्ताव भी इसी की अगली कड़ी है कि हमारे पास भी राष्ट्रीय स्तर का नेता है जो प्रधानमंत्री बनने की क्षमता रखता है.
राजनीति में कब क्या हो जाए, दुश्मन कब दोस्त बन जाए यह नहीं कहा जा सकता है. जिस तरह से तीसरे मोर्चे की फिर सुगबुगाहट होने लगी है, पीएम नरेन्द्र मोदी के विरोध के खेल में राहुल गांधी के नेतृत्व को ममता बनर्जी ने चुनौती दी है, उससे राष्ट्रीय स्तर पर नरेन्द्र मोदी के विकल्प के तौर पर चेहरा स्थापित करने की कवायद तेज होने लगी है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि हो सकता है कि जेडीयू का थिंक टैंक भविष्य की राजनीति को ध्यान में रखते हुए नीतीश कुमार को भी पीएम पद के लिेए योग्य उम्मीदवार होने का ध्यान दिला रहा हो.
‘बड़े भाई’ की भूमिका पाने की बैचैनी : पिछले विधानसभा चुनाव में जेडीयू के तीसरे स्थान पर आने के बाद से ही जेडीयू के नेता एनडीए में अपनी स्थिति को पूर्ववत बनाये रखने को लेकर प्रयत्नशील हैं. बड़े भाई की भूमिका में बने रहने के लिए नीतीश कुमार की अहमियत बताते रहे हैं. राजनीति के जानकारों का कहना है कि हो सकता है जेडीयू एक रणनीति के तहत बीजेपी नेतृत्व को मैसेज दे रही है कि वो उसे कतई हल्के में न लें साथ ही जिस तरह पिछले दिनों बीजेपी के कुछ नेताओं ने खुलकर गठबंधन सरकार की मजबूरी बताते हुए बीजेपी की खुद की सरकार बनाने का कार्यकर्ताओं से आह्वान किया था उसके खिलाफ भी जेडीयू ने इशारा कर दिया हो.
बिहार एनडीए में अभी शह-मात का दौर चल रहा है, साथ ही दबाव की राजनीति भी चरम पर है. अपने को बेहतर बताने की होड़ लगी है. बयानों की झड़ी लगी हुई है. हालांकि पीएम मैटेरियल संबधी बयान बिहार की राजनीति में क्या रंग लाएगी इसके लिए थोड़ा इंतजार करना बेहतर होगा.