जापान में प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव 29 सितंबर को होने जा रहे हैं। लैंगिक भेदभाव के कारण कुख्यात जापान में पहली बार प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में शामिल चार उम्मीदवारों में से दो महिलाओं का होना राजनीति के लिए एक बड़ा कदम माना जा रहा है। साने ताकाइची और सेको नोडा पिछले 13 साल में देश की पहली महिलाएं हैं, जिन्होंने प्रधानमंत्री पद के चुनाव में सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) के नेतृत्व के लिए अपनी दावेदारी पेश की है। यह चुनाव बुधवार को होगा। विजेता का अगला प्रधानमंत्री बनना निश्चित है, क्योंकि एलडीपी और इसके गठबंधन साझेदारों के पास संसदीय बहुमत है।
भले ही ये दोनों महिला नेता LPD सदस्य हैं, लेकिन वे कई तरीकों से राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं। अति-रूढ़िवादी ताकाइची एक तरह के पितृसत्तात्मक राष्ट्रवाद और एक मजबूत सेना की वकालत करती हैं, जबकि उदारवादी नोडा महिलाओं की उन्नति और लैंगिक विविधता की समर्थक हैं। ओसाका यूनिवर्सिटी ऑफ आर्ट्स में समाज एवं राजनीति में महिलाओं की भूमिकाओं के विषय की विशेषज्ञ मायूमी तानिगुची ने कहा, ‘‘जापान की राजनीति में महिलाओं की संख्या बहुत कम है। उनके पास राजनीति में बने रहने और सफल होने के तरीकों के सीमित विकल्प हैं। वे पुरुषों के समूह की राजनीति का मुकाबला कर सकती हैं या वे उनके प्रति वफादार रह सकती हैं।”
उन्होंने कहा कि ताकाइची ने स्पष्ट रूप से पुरुषों के प्रति वफादारी को चुना, जबकि नोडा मुख्यधारा से परे जाकर किंतु टकराव के बिना काम करती प्रतीत होती हैं और ‘‘वे दोनों एक दूसरे से काफी अलग हैं”। निवर्तमान प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा का उत्तराधिकारी बनने के लिए इन महिलाओं के सामने टीकाकरण मंत्री तारो कोनो और पूर्व विदेश मंत्री फुमिओ किशिदा की चुनौती है। कोनो और किशिदा को दमदार उम्मीदवार माना जा रहा है। ये दोनों ही जाने-माने राजनीतिक परिवारों से संबंध रखते हैं और पार्टी के शक्तिशाली धड़ों से संबंधित हैं, लेकिन कुछ लोग ताकाइची को तेजी से उभरती उम्मीदवार के तौर पर देख रहे हैं, जिन्हें पूर्व नेता शिंजो आबे का समर्थन प्राप्त है।
पार्टी सांसदों को लेकर किया गया मीडिया का ताजा सर्वेक्षण दर्शाता है कि उन्हें पार्टी के रूढ़िवादियों का समर्थन मिलना आरंभ हो गया है, जबकि नोडा चौथे स्थान पर हैं। इससे पहले जापान में एकमात्र महिला उम्मीदवार युरिको कोइके थीं, जो 2008 के चुनाव में उम्मीदवार थीं। वह इस समय तोक्यो की गवर्नर हैं। हालांकि ताकाइची या नोडा के प्रधानमंत्री बनने की संभावना कम है, लेकिन शीर्ष पद के लिए दो महिलाओं का यह प्रयास सत्तारूढ़ दल के लिए प्रगति माना जा रहा है। कुछ विशेषज्ञों ने ताकाइची की लैंगिक भेदभाव वाली नीतियों की आलोचना की है।
सोफिया विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर मारी मिउरा ने कहा, ‘‘अगर वह जीत जाती हैं तो वह महिलाओं की प्रगति को बढ़ावा नहीं देंगी।” विश्व आर्थिक मंच द्वारा लैंगिक भेदभाव को लेकर 2021 में किए गए 156 देशों के सर्वेक्षण में जापान उन्नत देशों के समूह ‘ग्रुप ऑफ सेवन्स’ में सबसे निचले स्थान पर रहा है। जापान की संसद में महिलाओं की संख्या केवल 10 प्रतिशत है और विश्लेषकों का कहना है कि कई महिलाएं लैंगिक समानता की वकालत करने के बजाय पार्टी के प्रति वफादारी दिखाकर आगे बढ़ने की कोशिश करती हैं।