मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अनुचित तरीके से हुआ ट्रांसफर यौन उत्पीड़न और नौकरी से इस्तीफा देने के लिए दबाव का कारण नहीं हो सकता। एमपी की एक पूर्व महिला न्यायिक आधिकारी की याचिका पर सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने दवाब में इस्तीफे के आरोप को गलत बताते हुए महिला अधिकारी कोे दोबारा बहाल किए जाने की मांग का विरोध किया।
हाई कोर्ट ने कहा कि पूर्व महिला न्यायिक अधिकारी के ‘आवेगपूर्ण’ निर्णय को ‘दबाव’ नहीं कहा जा सकता। उसने हाई कोर्ट के एक जज के खिलाफ लगाए गए अपने यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच होने के बाद इस्तीफा दे दिया था। सुप्रीम कोर्ट महिला न्यायिक अधिकारी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने अपनी बहाली की मांग की थी। हाई कोर्ट की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्न्याष यालय को बताया कि यदि कोई व्यक्ति अनियमित और अनुचित स्थानांतरण का सामना करता है, तो इसके लिए पूरी संस्था को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
जस्टिस एल नागेश्वर राव और बीआर गवई की पीठ के समक्ष मेहता ने कहा, ‘केवल एक अनुचित स्थानांतरण इस आरोप का उचित आधार नहीं हो सकता कि मुझे प्रताड़ित किया गया और मुझे इस्तीफा देना पड़ा।’ उन्होंने आगे कहा कि कोई न्यायिक अधिकारी आवेग में निर्णय नहीं ले सकता, क्योंकि उसका मुख्य काम किसी परिस्थिति से प्रभावित हुए बिना निर्णय लेना है। मेहता ने कहा, ‘यदि असुविधाजनक पारिवारिक परिस्थितियों वाले किसी अधिकारी के केवल मध्यावधि स्थानांतरण को कर्मचारी पर पर्याप्त दबाव माना जाता है, तो कोई भी संगठन कोई प्रशासनिक निर्णय नहीं ले सकता है।’
याचिका पर सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों के बीच रोचक बहस हुई। मेहता ने एक ओर महिला अधिकारी के तर्क को पाश्चात्य न्याय व्यवस्था से प्रेरित बताते हुए कहा कि हमारा न्याय शास्त्र, पश्चिमी विधिशाश्त्र से प्रभावित नहीं होना चाहिए। दूसरी एओर, याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने न्याय शास्त्र के प्रति मेहता के ‘राष्ट्रवादी’ रवैये पर कड़ी आपत्ति जताई। जयसिंह ने पीठ के समक्ष कहा, ‘मैं एक अंतरराष्ट्रीयतावादी हूं और मैं हर जगह प्रकाश की तलाश करूंगी। मैं आपके सामने विभिन्न न्यायालयों के फैसले रखूंगी। यह आप पर निर्भर है कि आप इसे स्वीकार करते हैं या नहीं।’ उन्होंने सॉलिसिटर जनरल द्वारा याचिकाकर्ता को ‘‘भावुक’’करार देने पर भी नाराजगी व्यक्त की और कहा कि यह एक रुढ़िवादी तर्क है।
हाई कोर्ट के जिस जज के खिलाफ महिला न्यायिक अधिकारी ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे, उन्हें दिसंबर 2017 में आरोपों की जांच करने वाली राज्यसभा की समिति ने दोषी नहीं पाया था। महिला ने अपनी याचिका में कहा है कि हाई कोर्ट ने 15 दिसंबर, 2017 की न्यायाधीशों की जांच समिति की रिपोर्ट के स्पष्ट निष्कर्ष की अनदेखी की। समिति की रिपोर्ट में अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के पद से याचिकाकर्ता के 15 जुलाई 2014 के इस्तीफे को असहनीय परिस्थतियों में लिया गया कदम बताया गया था। याचिका में कहा गया कि न्यायाधीशों की जांच समिति ने कहा था कि ‘याचिकाकर्ता को सेवा में बहाल किया जाए क्योंकि उसने दबाव में इस्तीफा दिया था।’
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