तालिबान-पाकिस्तान रिश्तों में जिस बात का डर था, वही होता दिख रहा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और बड़बोले विदेश मंत्री शाह शाह महमूद कुरैशी अपने पालतू तालिबान के लिए दुनियाभर से समर्थन मांग रहे हैं। उधर, तालिबान डूरंड लाइन को नहीं मान रहा है और पाकिस्तानी इलाके में तोपों से गोले बरसा रहा है। यही नहीं तालिबान की सुरक्षा में रह रहे तहरीक-ए-तालिबान (TTP) के आतंकी लगातार पाकिस्तानी सैनिकों की जान ले रहे हैं। इससे पीएम इमरान खान खुद ही अपने देश में बुरी तरह से घिर गए हैं।
अफगानिस्तान के चर्चित पत्रकार बिलाल सरवरी ने स्थानीय लोगों के हवाले से बताया कि शुक्रवार को टीटीपी के एक हमले में 2 पाकिस्तानी सैनिकों की मौत हो गई। इसके जवाब में पाकिस्तानी सेना ने अफगानिस्तान के कुनार इलाके में डूरंड लाइन पर जोरदार गोलाबारी शुरू कर दी। इसके जवाब में तालिबान के आतंकियों ने भी जवाबी कार्रवाई की और पाकिस्तानी सेना के दो सुरक्षा चौकियों पर तोप से गोले दागे। यह संघर्ष करीब 30 मिनट तक चला।
तालिबान को दंगाम में अतिरिक्त सेना भेजनी पड़ी : सरवरी ने बताया कि बाद में एक बार फिर से दोनों ही तरफ से डूरंड लाइन पर गोलाबारी शुरू हो गई। ग्रामीणों के मुताबिक कुनार प्रांत के तालिबानी गवर्नर ने पाकिस्तानी सैनिकों पर गोलाबारी करने का आदेश दिया था। उन्होंने बताया कि तालिबान और पाकिस्तानी सेना के बीच भारी गोलाबारी से तालिबान को दंगाम में अतिरिक्त सेना भेजनी पड़ी। दोनों तरफ की गोलाबारी में कई गांव में भी चपेट में आ गए।
इस बीच पाकिस्तानी सेना पर तालिबानी हमले के बाद इमरान खान सरकार को विपक्ष ने घेर लिया है। सीनेट के पूर्व अध्यक्ष और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के वरिष्ठ नेता रजा रब्बानी ने शुक्रवार को इमरान खान नेतृत्व वाली सरकार से सवाल किया कि जब अफगान तालिबान पाकिस्तान के साथ लगती सीमा को मान्यता देने के लिए तैयार नहीं है, तो ऐसे में उसकी मदद करने की क्या जल्दी है। अफगान रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता इनायतुल्ला ख्वारजमी ने बुधवार को कहा कि तालिबान बलों ने पाकिस्तानी सेना को पूर्वी प्रांत नंगरहार के पास सीमा पर ‘अवैध’ तारबंदी से रोक दिया।
दोनों पड़ोसियों के बीच सीमा रेखा एक विवादास्पद मुद्दा बना : इस मुद्दे पर अब तक पाकिस्तान सरकार की ओर से किसी ने औपचारिक रूप से कोई बयान जारी नहीं किया है। पूर्व में अमेरिका समर्थित शासन सहित अफगानिस्तान की सरकार का सीमा पर विवाद रहा है और यह ऐतिहासिक रूप से दोनों पड़ोसियों के बीच एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है। सीमा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डूरंड रेखा के रूप में जाना जाता है। इसका नाम ब्रिटिश नौकरशाह मोर्टिमर डूरंड के नाम पर रखा गया, जिन्होंने 1893 में तत्कालीन अफगान सरकार के साथ परामर्श के बाद ब्रिटिश इंडिया की सीमा तय की थी।
‘हमें क्यों आगे बढ़ना चाहिए?’ : सीनेट में रब्बानी ने मांग की कि विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को इस घटना पर संसद को विश्वास में लेना चाहिए। रब्बानी ने कहा, ‘वे (तालिबान) सीमा को मान्यता देने को तैयार नहीं है, ऐसे में हमें आगे क्यों बढ़ना चाहिए।’ रब्बानी ने स्थानीय मीडिया में आई उन खबरों को लेकर भी आगाह किया कि ‘पाकिस्तान में आतंकवाद को बढ़ावा देने के मकसद से प्रतिबंधित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) अफगानिस्तान में फिर से संगठित होने की कोशिश कर रहा है।