अमेरिका के अधिकतर नागरिकों का मानना है कि अफगानिस्तान में युद्ध ठीक नहीं था जबकि राष्ट्रपति जो बाइडेन की विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर अमेरिका के लोगों के अलग-अलग मत हैं। न्यूज एजेंसी ‘दि असोसिएटेड प्रेस’ और एनओआरसी सेंटर फॉर पब्लिक अफेयर्स रिसर्च की तरफ से जारी एक सर्वेक्षण में यह खुलासा हुआ है।
सर्वेक्षण के मुताबिक, करीब दो-तिहाई अमेरिकी नागरिकों ने कहा कि उनका मानना है कि अमेरिका का सबसे बड़ा युद्ध लड़ने लायक नहीं था। वहीं 47 फीसदी लोगों ने अंतरराष्ट्रीय मामलों पर बाइडेन के प्रबंधन को सही माना जबकि 52 फीसदी ने बाइडेन की राष्ट्रीय सुरक्षा की नीति को सही ठहराया।
बाइडेन की आलोचना : तालिबान के अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा करने और सत्ता में लौटने के बीच यह सर्वेक्षण 12 से 16 अगस्त तक कराया गया था। तालिबान के तेजी से बढ़ते प्रभुत्व को रोकने में सही तरीके से नहीं की गई तैयारी और मानवीय संकट को लेकर बाइडेन को आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है।
तालिबान के कंधार और हेरात पर कब्जा करने की खबर जब गुरुवार को आई, तो अमेरिकी सेना के पूर्व सैनिक टॉम एमेंटा बेहद गुस्सा हुए। उन्होंने अपने दोस्त जे ब्लेसिंग को वहां 2003 में एक बम धमाके में खो दिया था। टॉम ने वॉशिंगटन पोस्ट से बातचीत में सवाल किया, ‘मेरे दोस्त ने क्यों अपनी जान गंवाई थी और किसके लिए? अफगानिस्तान के पास कभी कोई समाधान नहीं था लेकिन अब जब चीजें और ज्यादा मुश्किल हो गई हैं, हम वहां से जा रहे हैं? यह सही नहीं है।’
इस जंग में सबसे बड़ी कीमत इंसानी जिंदगियों की चुकानी पड़ी है। कम से कम 2300 अमेरिकी सैनिकों की मौत हो गई जबकि 450 से ज्यादा ब्रिटिश सैनिकों की भी जान चली गई। 20.6 हजार अमेरिकी सैनिक घायल हो गए। इससे कहीं ज्यादा 45 हजार अफगान सैनिक 2019 तक सिर्फ पांच साल में मार दिए गए थे। ब्राउन यूनिवर्सिटी की रिसर्च क मुताबिक राष्ट्रीय सेना और पुलिस के 64 हजार कर्मियों की मौत 2001 के बाद हो गई थी। यही नहीं साल 2009 के बाद कम से कम 1.1 लाख आम नागरिकों की या तो मौत हो गई या वे घायल हो गए।
ऐरिजोना के जॉन व्हेलन ने कहा, ‘हमें पता था कि यह होगा। अफगानिस्तान में तैनात रह चुका हर सैनिक अब पूछा रहा है कि आखिर मेरे दोस्त ने किसके लिए जान गंवाई? मैं भी यही सवाल पूछता हूं।’ उनके दो दोस्तों की मौत 2010 में इसी शहर के पास हो गई थी। व्हेलन का मानना है कि अमेरिका की वापसी ने अफगान लोगों के साथ किए एक अनकहे वादे को तोड़ दिया है।
अमेरिकी सरकार के आंकड़ों के मुताबिक साल 2010 से 2012 के बीच इस जंग पर सालाना खर्च 100 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। इसके बाद अमेरिका ने अपना बजट तालिबान पर कार्रवाई की जगह अफगान सेना की ट्रेनिंग पर लगाना शुरू कर दिया और तब यह खर्च कम होने लगा। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के मुताबिक अफगानिस्तान पर अक्टूबर 2011 से लेकर सितंबर 2019 तक 778 अरब डॉलर खर्च किए जा चुके थे। ब्राउन यूनिवर्सिटी की साल 2019 की एक स्टडी के मुताबिक अफगानिस्तान और पाकिस्तान को मिलाकर तालिबान के खिलाफ जंग पर अमेरिका ने 978 अरब डॉलर खर्च कर दिए। इसमें साल 2020 के लिए आवंटित फंड में जोड़ा गया था। साल 2002 के बाद से अमेरिका ने 143 अरब डॉलर अफानिस्तान में पुनर्निर्माण पर खर्च किए हैं।
कंसास के 62 वर्षीय मार्क सोहल ने कहा, ’20 वर्ष बाद आप हार गए।’ हालांकि कुछ लोगों ने युद्ध का विरोध किया लेकिन अफगानिस्तान की हालत को देखते हुए वहां से हटने को उचित नहीं समझते। लुबौक, टेक्सास की 23 वर्षीय बाइडेन समर्थक सेबेस्टियन गार्सिया ने कहा, ‘हमें शुरू से ही वहां नहीं होना चाहिए था।’ उन्होंने कहा कि उनके तीन रिश्तेदार अफगानिस्तान में सेवा दे रहे हैं। करीब दो तिहाई लोगों का मानना है कि अफगानिस्तान के साथ ही चलने वाला इराक युद्ध भी एक गलती थी।
तालिबान की बदरी 313 बटालियन अत्याधुनिक अमेरिकी हथियारों से लैस है जिसे माना जा रहा है कि उन्होंने अफगान सेना से छीना है। ये कमांडो M-4 राइफल का इस्तेमाल कर रहे हैं जबकि अन्य तालिबानी लड़ाके एके-47 के साथ नजर आते हैं। तालिबानी फाइटर जहां पगड़ी पहनकर युद्ध कर रहे हैं वहीं बदरी बटालियन के कमांडो हेल्मेट और काला चश्मा पहने दिख रहे हैं। बदरी बटालियन के कमांडो ने सलवार कमीज की जगह पर वर्दी पहन रखी है। इन तालिबानियों ने लड़ाई में इस्तेमाल किए जाने वाले जूते पहन रखे हैं। इन्हें देखकर कोई नहीं अनुमान लगा पा रहा है कि ये तालिबानी हैं या किसी देश की सेना के कमांडो। अब ये तालिबानी काबुल की सड़कों पर गश्त लगा रहे हैं। अफगान मीडिया के मुताबिक इन बदरी कमांडो को सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने के लिहाज से तैनात किया गया है। बताया जा रहा है कि तालिबान का ‘राष्ट्रपति’ मुल्ला बरादर और अन्य नेता काबुल में रहेंगे और उनकी सुरक्षा का जिम्मा अब बदरी बटालियन के हाथों में रहेगा। इसी वजह से बदरी बटालियन को अब तैनात किया गया है। मुल्ला बरादर और अन्य तालिबानी नेताओं पर हमले का खतरा मंडरा रहा है।
डेली मेल के मुताबिक तालिबान की कमांडो यूनिट का नाम बद्र की लड़ाई के नाम पर पड़ा है जिसका जिक्र मुसलमानों की पवित्र पुस्तक कुरान में किया गया है। इस बद्र के युद्ध में पैगंबर मोहम्मद साहब ने 1400 साल पहले मात्र 313 लड़ाकुओं की मदद से अपने शत्रु की सेना को हरा दिया था। इंडिया टूडे की रिपोर्ट के मुताबिक किसी अन्य स्पेशल फोर्सेस के कमांडो यूनिट की तरह से बद्री बटालियन को तालिबान के अज्ञात ठिकाने पर लड़ाई की तकनीक का प्रशिक्षण दिया गया है। माना जा रहा है कि इस प्रशिक्षण में पाकिस्तानी सेना ने तालिबान की मदद की है। ये कमांडो शहरी इलाके जंग में माहिर लग रहे हैं जबकि अन्य तालिबानी लड़ाके पहाड़ी और गुरिल्ला युद्ध में माहिर हैं। तालिबान ने जब इस बटालियन के बारे में पहली बार जानकारी साझा की थी तब कहा गया था कि तालिबानी यह संदेश दे रहे हैं कि वे आधुनिक सैन्य सुविधाओं से लैस हैं। तालिबानी आतंकियों की दृढ़ता के बारे में सभी को पता है लेकिन अत्याधुनिक उपकरणों की कमी उन्हें अमेरिका और नाटो सेनाओं से पीछे ढकेलता था।
बद्री 313 बटालियन की नाइट विजन डिवाइस की मदद से अब तालिबानी आतंकी रात में छापामार हमला करने और हमले का मुकाबला करने में सक्षम हो गए हैं। अफगानिस्तान में युद्ध लड़ चुके पाकिस्तानी जैद हामिद कहते हैं कि ऐसा लग रहा है कि तालिबानी एक कदम आगे बढ़ गए हैं। हामिद ने कहा, ‘जब मैं अफगान मुजाहिद्दीन का हिस्सा था तब हमने सोवियत संघ को उन्हीं के हथियारों की मदद से मात दे दी थी। हमने उसे या तो सोवियत सेना से छीना था या हमें सहयोगियों ने दिया था। उन्होंने कहा कि तालिबानी एक कदम और आगे बढ़ गए हैं और उन्होंने अमेरिकी और अफगान सेना से ये हथियार छीने हैं। चरवाहों की सेना से अब तालिबानी काफी आगे निकल चुके हैं। पाकिस्तानी विशेषज्ञों का कहना है कि तालिबान अब किसानों का समूह नहीं रहा बल्कि एक पेशेवर पैरामिलिट्री फोर्स बन चुका है। एक विशेषज्ञ ने तो यहां तक कह दिया कि बद्री 313 बटालियन के सदस्य पाकिस्तानी जवानों से ज्यादा घातक हथियारों से लैस हैं। भारतीय विशेषज्ञ मेजर जनरल जीजी द्विवेदी कहते हैं कि तालिबान को धर्म से प्रेरणा मिलती है और उनके हथियारों को देखकर आश्चर्य नहीं होता है। यह पूरे क्षेत्र की सुरक्षा के लिए खतरा है।
बाइडेन फैसले पर अडिग : राष्ट्रपति अफगानिस्तान से हटने के अपने निर्णय पर अड़े हुए हैं और कहा है कि वह युद्ध को अनिश्चित समय तक जारी नहीं रहने दे सकते और कहा कि अमेरिकी इससे सहमत होंगे। वहीं, अमेरिकी सेना के मेजर जनरल विलियम ‘हैंक’ टेलर ने बताया है कि 14 अगस्त को बचाव अभियान के बाद से अफगानिस्तान से सात हजार लोगों को बाहर निकाला जा चुका है। उन्होंने बताया है कि अभी काबुल में 5,200 सैनिक मौजूद हैं।
आज अफगानिस्तान में महिलाएं डर के साए में जीने को मजबूर हैं। अफगानिस्तान में तलाकशुदा महिलाओं का जीवन मुश्किलों और चुनौतियों से भरा रहता है। रूढ़ीवादी समाज में तलाकशुदा महिलाओं के लिए कोई जगह नहीं होती। उन्हें उनके परिवार और समाज दोनों की ओर से बहिष्कृत कर दिया जाता है और उन्हें अपनी मूलभूत अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ता है। ऐसे देश में दो महिलाएं रोकिया और ताहिरा अपना जीवन आजादी से बिता रही हैं, जिसे उन्होंने खुद चुना है। दोनों काबुल में रहती हैं और उनका तलाक 7-8 साल पहले हो चुका है। अब उन्हें डर सता रहा है कि अगर तालिबान काबुल पर कब्जा कर लेता है तो वह उन्हें जीने नहीं देगा। रोकिया कहती हैं, ‘हम घर से नहीं निकल पाएंगे क्योंकि हमारे पास कोई पुरुष साथी नहीं है।’ तालिबान के कब्जे वाले इलाके में महिलाएं बिना पुरुष साथी के बाहर नहीं निकल सकती और उन्हें पूरी तरह से बुर्के में ढका हुआ होना चाहिए।
दोनों तालिबान के ‘जबरन शादी’ के नियम से भी डरी हुई हैं जो लड़कियों और विधवाओं पर लागू होता है। दोनों के पास मदद के लिए कोई नहीं है इसलिए वे खुद को अलग-थलग पाती हैं। उनका कहना है कि अगर तालिबान हम तक पहुंचता है तो हम अपना जीवन खत्म कर लेंगे। इसी तरह ज़हरा, जो आजाद अफगानिस्तान में पैदा हुईं और अब इस माहौल को देखकर डरी हुई हैं। ज़हरा हेरात में अपने घर के भीतर अपने माता-पिता और पांच भाई बहनों के साथ बंद हैं। वह कहती हैं, ‘मैं बहुत हैरान हूं। मेरी जैसी महिला के लिए, जिसने शिक्षा हासिल की और लैंगिक समानता के लिए इतना काम किया, घर में बंद रहना बहुत मुश्किल है।’ उत्तरी प्रांत के करीब 3000 परिवारों को तालिबान ने अपने कब्जे में ले लिया है, जो अब फुटपाथ पर और पार्क में तंबू के नीचे रहते हैं।
पिछले महीने की शुरुआत में तालिबानी विद्रोही पूरे अफगानिस्तान में अलग-अलग क्षेत्रों पर कब्जा कर रहे थे। इस दौरान लड़ाकों ने दक्षिणी शहर कंधार में अज़ीज़ी बैंक में घुसे और वहां काम करने वाली नौ महिलाओं को वहां से जाने के लिए कहा। बंदूकधारियों ने उन्हें घर तक पहुंचाया और कहा वे अब दोबारा नौकरी पर न जाएं। उनके बजाय उनके पुरुष साथी महिलाओं की जगह ले सकते हैं। 43 साल की महिला नूर खटेरा ने कहा कि काम पर वापस नहीं जाने देना अजीब है लेकिन अब यही सच्चाई है। उन्होंने कहा कि नौकरी के दौरान उन्होंने कंप्यूटर चलाना और अंग्रेजी बोलना सीखा लेकिन अब सब कुछ बेकार है। इसी तरह लड़ाके दो दिन बाद हेरात की एक बैंक में घुसे और दो महिला कैशियरों को चेतावनी दी कि वे अपना चेहरा ढक कर रखें, जिसके बाद उन्हें पुरुष साथी के साथ घर भेज दिया गया। पिछले साल तालिबान और अमेरिका समर्थित अफगान सरकार के बीच शांति वार्ता शुरू होने का बाद से पत्रकारिता, स्वास्थ्य सेवा और कानून प्रवर्तन सहित क्षेत्रों में काम करने वाली कई अफगान महिलाएं हमलों में मारी गईं।
तालिबान में महिलाओं की हर रात खौफ और प्रार्थना के बीच गुजरती है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाएं कहती हैं कि वे अब लोकतांत्रिक दुनिया से खुद को अलग-थलग महसूस कर रही हैं, जिसका वे कभी हिस्सा थीं। डेलीमेल के लिए लिखते हुए Shukria Barakzai ने लिखा कि सैंकड़ों लोग पहली ही मारे जा चुके हैं। हर जगह डरावनी कहानियां हैं, कुछ तो इतनी भयावह हैं कि विश्वास करना भी मुश्किल है। उन्होंने लिखा कि कहीं परिवार के सामने महिला की आंखें फोड़ दी गईं तो किसी रोती हुई एक 12 साल की बच्ची को सेक्स गुलाम बनाने के लिए अपनी मां की बाहों से छीन लिया गया, पुरुषों को संगीत सुनने या शिक्षा हासिल करने जैसे ‘अपराधों’ के लिए सजा दी जाती है या मार दिया जाता है। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान की प्राचीन और अशांत धरती पर एक और खूनी अध्याय की शुरुआत हो रही है।
‘सैनिक नहीं कर सकते महिलाओं की रक्षा’ : वहीं, एबीसी के एक शो के दौरान बाइडन ने अफगानिस्तान में महिलाओं और लड़कियों के साथ व्यवहार के बारे में जतायी जा रही चिंता को भी तवज्जो नहीं दी और दलील दी कि सैन्य बल के माध्यम से दुनिया भर में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने की कोशिश ‘तर्कसंगत नहीं’ है। इसके बदले, मानवाधिकारों का हनन करने वालों पर व्यवहार बदलने के लिए ‘राजनयिक और अंतरराष्ट्रीय दबाव’ दिया जाना चाहिए।
रोकी हथियारों की बिक्री : अमेरिका ने तालिबान द्वारा देश पर कब्जा किए जाने के बाद अफगानिस्तान सरकार को हथियारों की बिक्री पर रोक लगा दी है। विदेश विभाग के राजनीतिक/सैन्य मामलों के ब्यूरो ने कहा है, ‘अफगानिस्तान में तेजी से बदलती परिस्थितियों के मद्देनजर रक्षा बिक्री नियंत्रण निदेशालय विश्व शांति को आगे बढ़ाने, राष्ट्रीय सुरक्षा और अमेरिका की विदेश नीति में उनकी उपयुक्तता निर्धारित करने के लिए सभी लंबित और जारी किए गए निर्यात लाइसेंस और अन्य मंजूरी की समीक्षा कर रहा है।’