बीएसपी के पूर्व विधायक जितेंद्र सिंह बबलू की बीजेपी में एंट्री पर चल रहा सियासी विवाद मंगलवार को थम गया। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने बबलू को पार्टी से निष्कासित कर दिया। दरअसल इलाहाबाद सांसद रीता बहुगुणा जोशी ने बबलू को बीजेपी में लिए जाने पर खुलकर नाराजगी का इजहार किया था। पूर्व बीएसपी विधायक बबलू के लिए 12 साल पुराना मामला ही उनके लिए मुसीबत बन गया। उन पर रीता बहुगुणा जोशी का घर जलाने का आरोप है।
भारतीय जनता पार्टी की यूपी इकाई की ओर से जारी प्रेस रिलीज में बताया गया कि बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने पूर्व विधायक जितेंद्र सिंह बबलू की पार्टी की सदस्यता निरस्त की कर दी है। यह जानकारी पार्टी के प्रदेश मीडिया सह प्रभारी हिमांशु दूबे की ओर से दी गई है।
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष को रीता बहुगुणा जोशी ने दी बधाई : पूर्व विधायक जितेंद्र सिंह बबलू की बीजेपी से सदस्यता रद्द होने पर सांसद रीता बहुगुणा जोशी ने कहा, ‘मैंने उनके (यूपी बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह) के पास अपना विरोध दर्ज कराया था। उनकी ओर से की गई कार्रवाई के लिए मैं उन्हें बधाई देती हूं। पार्टी अध्यक्ष की ओर से उठाए कदम से वे संतुष्ट हैं।
रीता बहुगुणा ने पीएम मोदी से मांगा था वक्त : इलाहाबाद सांसद और यूपी सरकार में पूर्व मंत्री रीता बहुगुणा जोशी का घर जलाने के आरोपी बीकापुर के पूर्व विधायक जितेंद्र सिंह बबलू की सदस्यता पर नाराजगी जताई थी। रीता बहुगुणा ने अपना विरोध दर्ज कराने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी से समय मांगा था। इसके साथ ही उन्होंने बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को भी फोन करके नाराजगी का इजहार किया था। बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने भी शुक्रवार को बबलू के बीजेपी में शामिल होने को गलत बताया था। उनका कहना था कि यह पार्टी की नीति के खिलाफ है। बबलू बुधवार को ही बीजेपी में शामिल हुए थे। इसके बाद से ही पार्टी के अंदर घमासान मचा हुआ था।
‘मुझे जानकारी नहीं थी, जैसा रीता जी कहेंगी वह करूंगा’ : उधर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने शुक्रवार को एक निजी चैनल से बातचीत में कहा था कि पार्टी में किसी के शामिल होने की एक लंबी प्रक्रिया है। पार्टी किसी के शामिल होने से पहले जिले से रिपोर्ट लेती है और रिपोर्ट आने के बाद ही उसे शामिल किया जाता है। यह पूछे जाने पर कि क्या आपको नीचे की रिपोर्ट की जानकारी नहीं हुई? इस पर प्रदेश अध्यक्ष ने कहा, ‘वाकई मुझे जानकारी नहीं थी। मेरे पास रीताजी का फोन आया तो पूरी घटना की जानकारी हुई। जल्दी ही उनसे मुलाकात और बातचीत होगी। जो सही होगा और वह जैसा कहेंगी, वैसा किया जाएगा।’
बबलू के लिए क्यों मुश्किल बीजेपी में बने रहना : दरअसल बबलू के लिए बीजेपी में बने रहना इसलिए मुश्किल था, क्योंकि उनकी छवि बाहुबली नेता की रही है। हाल के दिनों में माफिया तत्वों के खिलाफ एक्शन को लेकर योगी सरकार चर्चा में रही है। ऐसे में उनको पार्टी में बनाए रखकर 2022 के विधानसभा चुनाव में जाना विपक्षी पार्टियों को एक मुद्दा दे सकता है। इसके अलावा वह राजपूत बिरादरी से आते हैं, जबकि रीता बहुगुणा जोशी खुद ब्राह्मण समुदाय से हैं। यूपी में चुनाव से पहले जोर-शोर से ब्राह्मणों के कथित उत्पीड़न का मुद्दा उठाया जा रहा है। जाहिर है बीजेपी बैठे-बिठाए समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी समेत विपक्षी दलों को फ्रंटफुट पर आने का मौका नहीं देना चाहेगी।
यह था मामला : जितेंद्र सिंह बबलू अयोध्या के रहने वाले हैं। 2007 में बहुजन समाज पार्टी पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई। उस वक्त बबलू बीकापुर से बीएसपी विधायक थे। घटना जुलाई 2009 की है। उस समय रीता बहुगुणा जोशी यूपी कांग्रेस कमिटी की अध्यक्ष थीं। बलात्कार के एक मामले में यूपी सरकार के मुआवजा देने पर सवाल उठाते हुए उन्होंने मुरादाबाद में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी।
जोशी ने कहा था, ‘मेरठ में जिस लड़की से बलात्कार हुआ उसे 25 हजार रुपया दिया गया। जहां दूसरी जगह बलात्कार हुआ एक नवविवाहित औरत के पति को 25 हजार रुपया दिया। फिर तीसरी जगह गए तो जो लड़की मारी गई थी उसके पिता को 75 हजार रुपया दिया। मैं कहती हूं फेंक दें ऐसा पैसा मायावती के मुंह पर और कह दें हो जाए $%#@…1 करोड़ रुपया तुमको देने को तैयार हैं।’
इसके बाद प्रदेश में बीएसपी के कार्यकर्ता रीता बहुगुणा के खिलाफ आक्रोशित हो गए थे। लखनऊ में रीता बहुगुणा जोशी के आवास को निशाना बनाते हुए आगजनी की गई। आरोप है कि जितेंद्र सिंह बबलू की मौजूदगी में यह सब हुआ। 15 जुलाई 2009 को रीता बहुगुणा जोशी का घर जलाने के मामले में लखनऊ के हुसैनगंज थाने में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। जांच के बाद 2011 में बबलू को लखनऊ पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। हालांकि बाद में उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया।
2017 में भी लटकी थी गिरफ्तारी की तलवार : 2017 में पुलिस ने इस मामले में आईपीसी की धारा- 307, 147 और 149 भी लगा दीं। जिसके बाद जितेंद्र सिंह को पुलिस फिर गिरफ्तार करने पहुंची। हालांकि उन्हें हाई कोर्ट ने राहत दे दी थी।