यूपी सरकार कोरोना प्रोटोकॉल तोड़ने और लॉकडाउन उल्लंघन के तीन लाख से ज्यादा मुकदमे वापस लेगी। केस वापसी के दायरे में वे मामले आएंगे, जिनमें अधिकतम दो साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
साथ ही जिन मुकदमों में आम आदमी (वर्तमान और पूर्व सांसद और विधायकों को छोड़कर) को आरोपी बनाया गया है। न्याय विभाग ने इस संबंध में अपर मुख्य सचिव गृह, सभी डीएम, डीजीपी और डीजी अभियोजन को पत्र लिखा है।
कोर्ट में प्रार्थना पत्र : पत्र में निर्देश दिए गए हैं कि कोरोना प्रोटोकॉल तोड़ने और लॉकडाउन उल्लंघन के (यानी, आपदा प्रबंधन अधिनियम-2005, महामारी अधिनियम-1897, आईपीसी की धारा 188, 269, 270 और 271 के तहत दर्ज मामले) जिन मामलों में पुलिस ने न्यायालय में आरोपपत्र दाखिल कर दिए गए हैं, उनमें केस वापसी के लिए कोर्ट में प्रार्थनापत्र दाखिल किए जाएं।
इसके लिए राज्यपाल ने अनुमति भी दे दी है। निर्देश दिए गए हैं कि इन मुकदमों की वापसी के लिए सीआरपीसी की धारा-321 के प्रावधानों का पालन किया जाए।
यूपी की स्थिति नियंत्रण में : जिलाधिकारियों को भेजे गए पत्र में प्रमुख सचिव न्याय प्रमोद कुमार श्रीवास्तव ने केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा सभी राज्यों के मुख्य सचिव को भेजे गए पत्र का हवाला दिया है। इस पत्र में केंद्र सरकार ने कहा था कि कोविड को लेकर जारी दिशा-निर्देशों पर प्रभावी कार्रवाई के कारण कोरोना के केसों पर काफी हद तक लगाम लगी है और स्थिति नियंत्रण में है।
हाई कोर्ट के निर्देश का जिक्र : कोरोना काल के दौरान दर्ज आपराधिक मामलों की समीक्षा की जाए और कम गंभीर मामले वापस लिए जाएं, जिससे आम नागरिकों को अदालत की फौजदारी प्रक्रिया से बचाया जा सके। पत्र में इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा इस संबंध में 8 अक्टूबर को पारित किए गए आदेश का भी जिक्र है।