पाकिस्तान ने एक बार फिर चीन की दोस्ती के आगे घुटने टेक दिए हैं। पाकिस्तान ने बुधवार को अमेरिका की ओर आयोजित समिट फॉर डेमोक्रेसी के वर्चुअल कार्यक्रम में हिस्सा लेने के अमेरिकी बुलावे को ठुकरा दिया है। इस संबंध में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी किया है जिसमें निमंत्रण के लिए अमेरिका को ‘धन्यवाद’ देते हुए कहा गया है कि वह ‘भविष्य में उचित समय पर’ कई मुद्दों पर देश के साथ बातचीत करेगा।
बयान में कहा गया है कि पाकिस्तान एक स्वतंत्र न्यायपालिका, जीवंत नागरिक समाज और एक स्वतंत्र मीडिया वाला एक बड़ा लोकतंत्र है। हम लोकतंत्र को और मजबूत करने, भ्रष्टाचार से लड़ने और सभी नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। मंत्रालय ने कहा कि हाल के सालों में पाकिस्तान ने इन लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से व्यापक सुधार किए हैं। इन सुधारों के सकारात्मक परिणाम भी मिले हैं।
‘कई मुद्दों पर अमेरिका के संपर्क में’ : बयान में आगे कहा गया है कि पाकिस्तान अमेरिका के साथ अपनी साझेदारी को महत्व देता है और द्विपक्षीय और साथ ही क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के मामले में इसका विस्तार करना चाहता है। पाकिस्तान ने कहा, ‘हम कई मुद्दों पर अमेरिका के संपर्क में हैं और मानते हैं कि हम भविष्य में इस विषय पर उचित समय पर जुड़ सकते हैं।’ साफ है कि चीन के समर्थन में पाकिस्तान ने भी इस सम्मेलन से खुद को किनारे कर लिया है।
रूस और चीन को नहीं भेजा न्योता : वाइट हाउस ने चीन और रूस को निमंत्रण नहीं भेजा, लेकिन ताइवान को निमंत्रण दिया गया है, जिस पर बीजिंग ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। यह कहा गया है कि वाइट हाउस ने आमंत्रित लोगों से उनकी भागीदारी की पुष्टि करने के लिए कहा था। पाकिस्तान पिछले हफ्ते इसकी घोषणा करने वाला था, लेकिन आंतरिक परामर्श की वजह से इसमें देरी हुई। राजनयिक सूत्रों के अनुसार सोमवार तक पाकिस्तान ने वाइट हाउस को आधिकारिक रूप से कोई जवाब नहीं दिया था। अफगानिस्तान की स्थिति को लेकर मतभेदों से पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्ते तनावपूर्ण हैं।
तालिबान पर इमरान के बयानों से वाइट नाखुश : तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद इमरान खान की ओर से दिए गए कुछ बयानों को वाइट हाउस ने पसंद नहीं किया है। एक अन्य कारण जिससे अमेरिकी निमंत्रण पर अंतिम निर्णय में देरी हो रही थी, वह रिपोर्ट है कि अमेरिकी ट्रेजरी लोकतंत्र को कमजोर करने वाले लोगों के खिलाफ प्रतिबंध लगाएगी। मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन और भ्रष्टाचार में शामिल लोगों पर भी प्रतिबंध लगाया जाएगा। लेकिन एक राजनयिक सूत्र ने स्पष्ट किया कि शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लेने का मतलब यह नहीं है कि देश को किसी भी प्रतिबंध का सामना करना पड़ेगा।