अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान अब अपने शासन का ऐलान करने जा रहा है। इस बीच अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश छोड़कर भागने के बाद तालिबान ने राष्ट्रपति भवन पर भी कब्जा कर लिया है। तालिबान ने कहा है कि वह राष्ट्रपति भवन से अफगानिस्तान पर अपनी सरकार का ऐलान करने की तैयारी में है।
इस्लामिक एमिरेट ऑफ अफगानिस्तान रखेगा नाम : न्यूज एजेंसी एपी ने एक तालिबान नेता के हवाले से बताया है कि यह आतंकी समूह प्रेसिडेंशियल पैलेस से जल्द ही ‘इस्लामिक एमिरेट ऑफ अफगानिस्तान’ का ऐलान करेगा। सितंबर 2001 से पहले तक तालिबानी हुकूमत के दौरान देश का यही नाम रखा गया था। तालिबानी नेता ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर एपी को यह जानकारी दी क्योंकि वह मीडिया से बातचीत के लिए अधिकृत नहीं है।
1996 से 2001 तक सत्ता चला चुका है तालिबान : 1996 में अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद तालिबान ने अपने शासन का नाम यही रखा था। पूरे देश में इस्लामिक शरिया कानून को लागू कर दिया गया था। उस दौरान सबसे खराब स्थिति महिलाओं की थी। तालिबान ने महिलाओं के स्कूल में पढ़ने और बिना बुर्के के बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी है।
पिछले 20 साल से सरकार से जंग लड़ रहा तालिबान : 2001 से ही तालिबान अमेरिका समर्थित अफगान सरकार से जंग लड़ रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान का उदय भी अमेरिका के प्रभाव से कारण ही हुआ था। अब वही तालिबान अमेरिका के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बना हुआ है। 1980 के दशक में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में फौज उतारी थी, तब अमेरिका ने ही स्थानीय मुजाहिदीनों को हथियार और ट्रेनिंग देकर जंग के लिए उकसाया था। नतीजन, सोवियत संघ तो हार मानकर चला गया लेकिन अफगानिस्तान में एक कट्टरपंथी आतंकी संगठन तालिबान का जन्म हो गया।
कैसे हुआ था तालिबान का जन्म : सोवियत सेना की वापसी के बाद अलग-अलग जातीय समूह में बंटे ये संगठन आपस में ही लड़ाई करने लगे। इस दौरान 1994 में इन्हीं के बीच से एक हथियारबंद गुट उठा और उसने 1996 तक अफगानिस्तान के अधिकांश भूभाग पर कब्जा जमा लिया। इसके बाद से उसने पूरे देश में शरिया या इस्लामी कानून को लागू कर दिया। इसे ही तालिबान के नाम से जाना जाता है। इसमें अलग-अलग जातीय समूह के लड़ाके शामिल हैं, जिनमें सबसे ज्यादा संख्या पश्तूनों की है।
सोवियत और अमेरिका भी नहीं कर पाया तालिबान का खात्मा : अफगानिस्तान में तालिबान की जड़ें इतनी मजबूत हैं कि अमेरिका के नेतृत्व में कई देशों की सेना के उतरने के बाद भी इसका खात्मा नहीं किया जा सका। तालिबान का प्रमुख उद्देश्य अफगानिस्तान में इस्लामिक अमीरात की स्थापना करना है। 1996 से लेकर 2001 तक तालिबान ने अफगानिस्तान में शरिया के तहत शासन भी चलाया। जिसमें महिलाओं के स्कूली शिक्षा पर पाबंदी, हिजाब पहनने, पुरुषों को दाढ़ी रखने, नमाज पढ़ने जैसे अनिवार्य कानून भी लागू किए गए थे।