ब्रिटेन की सरकार के आधिकारिक वैज्ञानिक सलाहकार समूह ने (SAGE) ने आने वाले समय में बेहद घातक सुपर-म्यूटेंट कोरोना वायरस वेरियंट के खतरे की चेतावनी दी है। इन वैज्ञानिकों का कहना है कि ये वायरस मौजूदा वैक्सीनों को बेअसर कर देगा। उन्होंने चेतावनी दी है कि वायरस को पूरी तरह खत्म करना मुश्किल है और इसलिए वेरियंट्स आते रहने की संभावना बनी हुई है। उनके मुताबिक ऐंटीजेन में वेरिएशन की मदद से वैक्सीनें बेअसर हो जाएंगी।
इस समूह ने सरकार को चेतावनी दी है कि इससे बचने के लिए ट्रांसमिशन रोकना बेहद जरूरी है। इसके अलावा ऐसी वैक्सीन विकसित करने के लिए कहा गया है जो सिर्फ अस्पताल में भर्ती होने या गंभीर बीमारी को ना रोकें, बल्कि और ज्यादा इम्यूनिटी लंबे वक्त के लिए विकसित करें।
कई वेरियंट आए सामने : रिपोर्ट के मुताबिक लक्ष्य यह होना चाहिए कि जिन लोगों को वैक्सीन लग चुकी है, उनसे इन्फेक्शन न फैले। वैज्ञानिकों का कहना है कि पिछले कई महीनों में कई वेरियंट सामने आए हैं जो वैक्सीन से बचे हैं लेकिन पूरी तरह बेअसर नहीं कर पाए हैं। हालांकि, इससे यह आशंका पैदा होती है कि वैक्सिनेशन के बढ़ने से कहीं वायरस इसके खिलाफ सुरक्षा न विकसित कर ले। इसलिए ट्रांसमिशन रोकना बेहद जरूरी है।
इस वैक्सीन पर अंतरराष्ट्रीय टीमों की रिसर्च के डेटा में पता चला कि दो खुराकों के बीच में 12 हफ्ते का अंतर होने से ज्यादा असर होता है। अमेरिका, पेरू और चिली में किए गए ट्रायल में पाया गया कि चार हफ्ते से ज्यादा के अंतराल पर दूसरी खुराक देने से 79% असर ज्यादा होता है। दूसरे देशों में डेटा से पता चला कि 6 हफ्ते बाद दूसरी खुराक देने से ज्यादा असर होता है। ब्राजील, ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका में पाया गया कि दूसरी खुराक 6-8 हफ्ते बाद देने से असर 59.9%, 9-11 हफ्ते बाद देने से 63.7% और 12 या उससे ज्यादा हफ्ते बाद देने से 82.4% असर देखा गया। द लैंसेट में यह स्टडी फरवरी में छपी थी लेकिन इसका पियर-रिव्यू नहीं किया गया है। फिलहाल किसी स्टडी में 16 हफ्ते बाद दूसरी खुराक के असर को नहीं देखा गया है।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक NTAGI के डॉ. एनके अरोड़ा का कहना है कि 8 हफ्ते से अंतराल बढ़ाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं, खासकर तब जब वैक्सीन की देश में कमी नहीं है। उनके मुताबिक यह ऐसे देशों के लिए फायदेमंद हो सकता है जहां वैक्सीन की कमी हो। उन्होंने बताया कि अंतराल को ज्यादा बढ़ाने से बीच में इन्फेक्शन का खतरा बढ़ सकता है। हालांकि, अंतराल बढ़ाने से ज्यादा से ज्यादा लोगों को कम से कम पहली खुराक जल्दी दी जा सकेगी। कुछ स्टडीज में यह भी देखा जा रहा है कि क्या दोनों खुराकें अलग-अलग वैक्सीन की लग सकती हैं। अंतराल बढ़ाने से इसे लेकर ज्यादा पुख्ता जानकारी सामने आ सकेगी।
फरवरी में WHO की चीफ साइंटिस्ट सौम्या स्वामिनाथन ने बताया था कि AstraZeneca की दूसरी खुराक का अंतराल बढ़ाने से ज्यादा असर देखा गया है। उन्होंने बताया था कि 12 हफ्ते के अंतर से ज्यादा इम्यून बूस्ट मिल सकता है। अमेरिका के रोशेस्टर में मेयो क्लिनिक में की गई एक स्टडी के मुताबिक Pfizer या Moderna की एक खुराक से भी 80% सुरक्षा मिल सकती है और इसके बाद संक्रमित लोगों के अस्पताल में भर्ती होने का खतरा कम हो सकता है। वहीं, स्पेन ने भी AstraZeneca की पहली और दूसरी खुराक में 16 हफ्ते का अंतर किया है।
…तो जाएगी 3 में से 1 जान : इस रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने यह चिंता भी जताई है कि सुपर म्यूटेंट वेरियंट के कारण तीन में से एक इंसान की जान भी जा सकती है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर आने वाला स्ट्रेन दक्षिण अफ्रीका में मिले बीटा और केंट में मिले आल्फा या भारत में मिले डेल्टा वेरियंट से मिलकर बना तो यह वैक्सीन्स को भी बेअसर कर देगा। इसकी वजह से मृत्युदर बढ़ने की भी आशंका है।
लॉकडाउन खत्म करने से पहले चेतावनी : इस रिपोर्ट के आधार पर ब्रिटेन में लॉकडाउन के प्रतिबंध को खत्म करने की सरकार की तैयारियों को लेकर एक्सपर्ट्स ने एक बार फिर चेताया है। उनका कहना है कि SAGE की रिपोर्ट से पता चलता है कि वायरस से पीछा अभी छूटा नहीं है। इसलिए सरकार को इसे लेकर ज्यादा अलर्ट होना चाहिए। इन एक्सपर्ट्स ने ब्रिटेन की सरकार से अपील की है कि सर्दियों तक बूस्टर शॉट लाए जाएं।