कांग्रेस नेता और पूर्व भारतीय क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu road rage case) के लिए आज का दिन बेहद अहम है। 34 साल पुराने रोडरेज केस में सुप्रीम कोर्ट 20 मई को फैसला सुनाने वाला है। पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए देश की सर्वोच्च अदालत यह तय करेगी की उनकी सजा बढ़ाई जाए या नहीं। याचिका में कहा गया है कि सिद्धू की सजा कम नहीं की जानी चाहिए। पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट ने सिद्धू को गैर इरादतन हत्या में तीन साल कैद की सजा सुनाई थी जबकि सुप्रीम कोर्ट ने गैर इरादन हत्या में बरी कर दिया था, लेकिन चोट पहुंचाने के मामले में एक हजार रुपये का जुर्माना लगाया था।
दिसंबर 1988 की है घटना : 27 दिसंबर 1988 को यह विवाद पटियाला में हुआ था। जब सिद्धू ने बीच पर जिप्सी पार्क की हुई थी। जब पीड़ित और दो अन्य बैंक से पैसा निकालने के लिए जा रहे थे सड़क पर जिप्सी देखकर सिद्धू को उसे हटाने को कहा। यही बहसबाजी शुरू हो गई। पुलिस का आरोप था कि इस दौरान सिद्धू ने पीड़ित के साथ मारपीट की और मौके से फरार हो गए। पीड़ित को अस्पताल ले जाने पर मृत घोषित कर दिया गया।
3-3 साल की सजा हुई थी : सितंबर 1999 में निचली अदालत ने नवजोत सिह सिद्धू को बरी कर दिया था, लेकिन हाई कोर्ट ने दिसंबर 2006 में सिद्धू और एक अन्य पर गैर इरादतन हत्या मामले में दोषी करार देते हुए 3-3 साल कैद की सजा सुनाई थी, जिसे दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसके बाद उच्चतन न्यायालय ने सिद्धू को पीड़ित के साथ मारपीट मामले में दोषी करार देते हुए हजार रुपये का जुर्माना लगाया था। इसी मामले में अब पीड़ित की ओर से सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन दाखिल की गई है।
शो में स्वीकारी थी मारने की बात : यह नवजोत सिंह सिद्धू के क्रिकेट करियर का शुरुआती साल ही था। हादसे के वक्त उनकी उम्र महज 25 साल थी। 1983 में टेस्ट डेब्यू कर चुके इस बल्लेबाज को पहला वनडे खेलने में चार साल और लग गए। 1987 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चेन्नई में डेब्यू किया और फिर अगले ही साल यह कांड हो गया। इसी मामले के चलते चुनाव लड़ने पर भी आपत्ति दर्ज की गई। बाद में बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें इजाजत दी थी। मृतक गुरनाम सिंह के परिजनों ने 2010 में एक चैनल के शो में सिद्धू द्वारा गुरनाम को मारने की बात स्वीकार करने की सीडी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की थी।