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October 22, 2024
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मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालयों ने वन्यजीव बोर्डों के गठन को लेकर राज्य सरकारों से मांगा जवाब


मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालयों ने वन्यजीव बोर्डों के गठन में नियमों का उल्लंघन किये जाने का आरोप लगाने वाली याचिकाओं पर संबंधित राज्य सरकारों से जवाब तलब किया है।
दोनों ही उच्च न्यायालय वन्यजीव कार्यकर्ता अजय दुबे की याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे हैं। जबलपुर में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय और बिलासपुर में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में इस विषय पर सुनवाई चल रही है।
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इन अदालतों ने सोमवार को याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकारों से जवाब मांगा। आधिकारिक अदालती आदेश पत्र से यह जानकारी सामने आयी है।
अपने आदेश में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक और न्यायमूर्ति विशाल धगत की पीठ ने राज्य सरकार के वकील से कहा कि इस विषय पर सरकार से निर्देश प्राप्त करके अतिरिक्त जवाब दाखिल करें ।
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत सभी राज्य सरकारों पर मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राज्य वन्यजीव बोर्ड का गठन करने का दायित्व है । इस बोर्ड पर वन्यजीव एवं विनिर्दिष्ट पेड़-पौधों की सुरक्षा एवं संरक्षण के वास्ते सलाह देने की जिम्मेदारी होती है।
राज्य सरकार द्वारा इस बोर्ड में अनुसूचित जाति के दो प्रतिनिधियों समेत मशहूर संरक्षणवादियों, पारिस्थितिकीविदों, पर्यावरणविदों को इसमें नामित करना होता है। राज्य सरकार पर बोर्ड को कानून के अनुसार अपना कामकाज चलाने के लिए नियम भी बनाने का जिम्मा होता है।
दुबे ने अगस्त, 2019 में दायर की गयी अपनी याचिका में दावा किया कि मध्यप्रदेश सरकार ने अबतक ये नियम नहीं बनाये। उन्होंने यह भी कहा कि ‘वन्यजीव में विशेष हित’वाले लोगों को बोर्ड में नामित किया गया है जबकि कानून कहता है कि सरकार मशहूर संरक्षणवादियों से सदस्य नामित कर सकती है।
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायाल ने अपने आदेश में राज्य सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए चार हफ्ते का समय दिया है। दुबे ने इस न्यायालय के समक्ष भी वे ही बिंदु उठाये हैं।
उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘ मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ सरकारों को यथाशीघ्र यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार राज्य वन्यजीव बोर्ड गठित हो जाएं। ’’
उन्होंने यह भी कहा कि राज्य सरकारों को किसी भी राजनीतिक हित को पर्यावरण एवं वन्यजीव को प्रभावित नहीं करने देना चाहिए। उनकी ही याचिका पर उच्चतम न्याालय ने 2012 में केंद्र को बाघ अभयारण्य क्षेत्रों में पर्यटन पर रोक लगाने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश दिया था।

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