अफगानिस्तान में फिर से इस्लामिक अमीरात की स्थापना करने जा रहे तालिबान में ब्रिटेन के जिहादी शामिल हो रहे हैं। ये जिहादी गुपचुप तरीके से अफगानिस्तान से सटे देशों से होते हुए सीमा पार कर तालिबान के गढ़ में प्रवेश कर रहे हैं। फोन कॉल इंटरसेप्शन के बाद मिली जानकारी से ब्रिटिश खुफिया एजेंसियों के होश उड़े हुए हैं। इससे पहले भी सीरिया और ईराक में कहर बरपाने वाले आतंकी गुट आईएसआईस में भी ब्रिटेन के कई कट्टरपंथी शामिल हुए थे।
फोन कॉल इंटरसेप्ट करने से हुआ खुलासा : द सन ने एक वरिष्ठ सैन्य खुफिया अधिकारी के हवाले से बताया कि ब्रिटिश लहजे वाले आतंकवादियों के फोन कॉल को इंटरसेप्ट किया गया है। सूत्रों के अधिकारी के हवाले से बताया कि हमें दो ब्रिटिश पुरुषों के कुछ इंटरसेप्ट मिले हैं, शायद 30 साल से कम उम्र के, मोबाइल पर खुलकर बात कर रहे हैं। इसमें से एक के बात करने का तरीका लंदन के लोगों से मिल रहा है।
ब्रिटिश खुफिया एजेंसियों की चिंता बढ़ी : अधिकारी ने स्वीकार किया कि हमें नहीं पता कि वे कौन हैं। इन नंबरों के बारे में पता लगाना भी मुश्किल हैं। आंतरिक खुफिया रिपोर्ट के हवाले से दावा किया गया है कि कुछ ब्रिटिश कट्टरपंथी अफगान सरकार के खिलाफ हथियार उठा रहे हैं। ये लोग अफगानिस्तान में सत्ता हथियाने की कोशिश में हमले कर रहे तालिबान का साथ दे रहे हैं। अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद से ही तालिबान ने कोहराम मचाया हुआ है।
पाकिस्तान से होकर अफगानिस्तान पहुंचे ब्रिटिश जिहादी :माना जाता है कि ब्रिटिश जिहादियों ने तालिबान तक पहुंचने के लिए पाकिस्तान के कबायली इलाकों से होते हुए अफगानिस्तान की यात्रा की थी। तालिबान ने 8 दिनों के अंतर अफगानिस्तान की 34 में से 18 प्रांतीय राजधानियों पर कब्जा कर लिया है। हेरात और कंधार पर कब्जे के 24 घंटे के अंदर तालिबान ने कलात, तेरेनकोट, पुल-ए आलम, फ़िरुज़ कोह, काला-ए-नवा और लश्कर गाह पर नियंत्रण हासिल कर लिया है। तालिबान का अगला निशाना राजधानी काबुल है। तालिबान के आतंकी काबुल को चारों तरफ से घेरे बैठे हुए हैं।
ब्रिटेन भी भेज रहा 600 कमांडो : ब्रिटेन ने गुरुवार को ऐलान किया कि वह अफगानिस्तान से अपने नागरिकों को निकालने में सहायता के लिए 600 कमांडो की टीम को भेज रहा है। ब्रिटेन के रक्षा सचिव बेन वालेस ने कहा कि अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती अफगानिस्तान में बढ़ती हिंसा और तेजी से बिगड़ते सुरक्षा माहौल को देखते हुए की गई है। दोनों देशों के ये कमांडो पहले भी अफगानिस्तान में तैनात रह चुके हैं। ऐसे में इनके पास तालिबान और अफगानिस्तान को लेकर काफी रणनीतिक समझ है।