तालिबान ने अफगानिस्तान में सरकार गठन में हो रही देरी के बीच इस्लामिक अमीरात की छह आधिकारिक वेबसाइट को लॉन्च किया है। अंग्रेजी, दारी, पश्तो, अरबी और उर्दू भाषा में बनी इन वेबसाइटों पर तालिबान और उसकी सरकार के बारे में कई जानकारियां अपलोड की गई हैं। तालिबान ने यह भी कहा है कि इस्लामिक अमीरात से जुड़ी हर एक अपडेट इन वेबसाइटों के माध्यम से जारी की जाएंगी।
जबीउल्लाह मुजाहिद ने शेयर किया : इस्लामिक अमीरात की इन वेबासाइटों को तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने शेयर किया है। उन्होंने ट्वीट कर छह वेबसाइट के लिंक देते हुए लिखा कि अब से, आप इस्लामिक अमीरात की आधिकारिक वेबसाइट अल-अमारा को फॉलो कर सकते हैं।
तालिबान के छह वेबसाइट्स
http://alemarah.asia
http://alemarahenglish.asia
http://alemarahdari.asia
http://alemaraharabic.asia
http://ieaurdu.com
http://alsomood.net
सरकार गठन के लिए तारीख पर तारीख दे रहा तालिबान : अफगानिस्तान फतह करने के बाद ऐसा माना जा रहा था कि तालिबान अपनी नई सरकार का ऐलान जल्द से जल्द कर देगा। उसके बाद यह बताया गया कि तालिबान अफगान जमीन से अमेरिकी सैनिकों की पूर्ण वापसी का इंतजार कर रहा है। इसके बाद तालिबान प्रवक्ता ने नई तारीख देते हुए बताया कि शुक्रवार को हम अपनी सरकार का ऐलान करने जा रहे हैं। ऐसे में सबको यह लगने लगा कि जुमे की नमाज के बाद यह आतंकी संगठन अफगानिस्तान में अपने इस्लामिक अमीरात का ऐलान करेगा। खैर, शुक्रवार भी बीत गया और अभी तक तालिबान अपनी सरकार का औपचारिक घोषणा नहीं कर सका है।
हक्कानी और तालिबान नेताओं में झड़प की खबर! : दावा यहां तक किया जा रहा है कि हक्कानी नेटवर्क के नेता अनस हक्कानी और खलील हक्कानी का तालिबान के नेता मुल्ला बरादर और मुल्ला याकूब के साथ झड़प भी हुई है। हालांकि, इस दावे की स्वतंत्र पुष्टि नहीं की जा सकी है। हक्कानी नेटवर्क सरकार में बड़ी हिस्सेदारी और रक्षा मंत्री का पद मांग रहा है, जबकि तालिबान इतना कुछ देने को तैयार नहीं है। बताया जा रहा है कि यही कारण है कि तालिबान अबतक अपनी सरकार का ऐलान नहीं कर सका है।
हक्कानी नेटवर्क कैसे बना? : इस संगठन को खूंखार आतंकी और अमेरिका के खास रहे जलालुद्दीन हक्कानी ने स्थापित किया था। 1980 के दशक में सोवियत सेना के खिलाफ उत्तरी वजीरिस्तान के इलाके में इस संगठन ने काफी सफलता भी पाई थी। कई अमेरिकी अधिकारियों ने दावा किया है कि जलालुद्दीन हक्कानी को सीआईए फंडिंग करती थी। इतना ही नहीं, उसे हथियार और ट्रेनिंग भी सीआईए के एजेंट ही दिया करते थे। जलालुद्दीन हक्कानी उसी समय से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के भी खास थे। दरअसल, सीआईए को आईएसआई ही बताती थी कि किस मुजाहिद्दीन को कितना पैसा और हथियार देना है। यही कारण है कि आज भी हक्कानी नेटवर्क पर पाकिस्तान का बहुत ज्यादा प्रभाव है और इसी कारण भारत की चिंताएं भी बढ़ी हुई हैं।