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December 9, 2024
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अफगान सीमा पर भारत का एकमात्र विदेशी सैन्य अड्डा जो बना वरदान, सैकड़ों भारतीयों को तालिबान से बचाया


अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद फंसे भारतीयों को बचाने के लिए भारतीय वायुसेना जुटी है और इस मिशन में एक ऐसा ठिकाना दुनिया के सामने आया है जिसके बारे में पहले कभी इतनी चर्चा नहीं की गई थी। काबुल एयरपोर्ट पर भारी भीड़ के कारण भारतीयों को लेने गए C-17 एयरक्राफ्ट को अपना रास्ता बदलना पड़ा और यह पहुंचा ताजिकिस्तान के गिस्सार सैन्य एयरोड्रोम पर जो विदेश में भारत का इकलौता सैन्य बेस है।
कई साल का ‘सीक्रेट’ रिश्ता : गिस्सार सैन्य एयरोड्रोम या Ayni एयरबेस देश की राजधानी दुशांबे के पास एक गांव में स्थित है। फाइनैंशल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक इसके विकास में भारत ने 7 करोड़ डॉलर खर्च किए थे। इस पर 3200 मीटर का आधुनिक रनवे, एयर ट्रैफिक कंट्रोल, नैविगेशन उकरण और मजबूत एयर डिफेंस सिस्टम बनाया गया है।
हालांकि, इसे लेकर दोनों देशों की सरकारों ने सार्वजनिक तौर पर बहुत ज्यादा चर्चा नहीं की है। इसके साथ भारत के जुड़ने को लेकर भी चुप्पी ही साधी जाती रही है। जब अफगानिस्तान संकट के दौरान भारती वायुसेना ने इसका इस्तेमाल किया तो यह रोशनी में आया है।
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी ने कहा है कि अधिकांश अफगान अपनी मातृभूमि छोड़ने में असमर्थ हैं और जो लोग खतरे में पड़ सकते हैं उनके पास कोई स्पष्ट रास्ता नहीं है। शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) की प्रवक्ता शबिया मंटू ने पड़ोसी देशों से अपनी सीमाओं को खुला रखने और लोगों को शरण देने की अपील की है। उन्होंने जिनेवा में कहा कि अधिकांश अफगान नागरिक फ्लाइट या सीमा पार कर देश नहीं छोड़ सकते हैं। जो लोग खतरे में हैं उनके पास बचने का कोई स्पष्ट रास्ता नहीं है। वर्तमान में पाकिस्तान और ईरान में सबसे ज्यादा अफगानिस्तान शरणार्थी रह रहे हैं। बताया जाता है कि इन दोनों देशों में अफगान शरणार्थियों की तादाद 26 लाख के आसपास है। यह संख्या कुल अफगान शरणार्थियों की 96 फीसदी है। इसके बावजूद रोज बड़ी संख्या में लोग अफगानिस्तान छोड़कर भाग रहे हैं।
यूनाइटेड नेशन्स हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजी के अनुसार, शरणार्थी को किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया है जिसे उत्पीड़न, युद्ध या हिंसा के कारण अपने देश से भागने के लिए मजबूर किया गया है। एक शरणार्थी को नस्ल, धर्म, राष्ट्रीयता, राजनीतिक राय या किसी विशेष सामाजिक समूह में सदस्यता के कारणों के लिए उत्पीड़न का एक अच्छी तरह से स्थापित भय है। सबसे अधिक संभावना है, वे घर नहीं लौट सकते या ऐसा करने से डरते हैं। युद्ध और जातीय, आदिवासी और धार्मिक हिंसा शरणार्थियों के अपने देशों से भागने के प्रमुख कारण हैं। यूएनएचसीआर के अनुसार, शरणार्थियों की सबसे अधिक तादाद दुनिया के सिर्फ पांच देशों से ही निकली है। इनमें सीरिया, वेनेजुएला, अफगानिस्तान, दक्षिण सूडान और म्यांमार शामिल हैं।
अफगान नागरिकों को शरण देने के मामले में भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, पाकिस्तान, ईरान, उज्बेकिस्तान, यूगांडा जैसे देश शामिल हैं। अमेरिका अपने स्तर से दुनिया के कई देशों से इन लोगों को शरण देने के लिए बात कर रहा है। ऐसे में आने वाले दिनों में काबुल समेत देश के कई एयरपोर्ट्स से विदेश जाने वाली फ्लाइट्स की संख्या बढ़ सकती है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भी कहा है कि हम अफगानिस्तान से बाहर जाने की इच्छा रखने वाले लोगों की सहायता करेंगे।
अमेरिका ने दो दिन पहले तक अफगानिस्तान से करीब 18000 लोगों को बाहर निकाला था। इनमें से 1200 अफगान नागरिक हैं। इन लोगों को कतर के रास्ते अमेरिका लेकर जाने की तैयारी है। आने वाले हफ्तों में अमेरिका ऑपरेशन एलाइज रिफ्यूजी नाम से मिशन चलाने जा रहा है। इससे इनकी संख्या बढ़कर 3500 तक हो सकती है। इन लोगों को यूएस रिफ्यूजी एडमिशन प्रोग्राम के तहत मदद की जा रही है। अमेरिकी विदेश विभाग ने बताया कि अमेरिका का उद्देश्य आज भी एक शांतिपूर्ण, सुरक्षित अफगानिस्तान बनाने का ही है। कहा जा रहा है कि अमेरिका 10 हजार तक अफगानी शरणार्थियों को शरण दे सकता है। इनमें से बड़ी तादाद उन लोगों की है जिन्होंने अमेरिकी सेना की अफगानिस्तान में सहायता की है।
भारत ने शरणार्थियों पर 1951 के कन्वेंशन या शरणार्थियों की स्थिति से संबंधित 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किया है। इसके बावजूद भारत ने एक अच्छे पड़ोसी होने के नाते हजारों की संख्या में अफगान नागरिकों को शरण दी है। लगभग हर दिन अफगानिस्तान से सिविल और सैन्य एयरक्राफ्ट के जरिए अफगान नागरिकों को भारत लाया जा रहा है। इनमें महिलाओं और अफगान नेताओं की संख्या ज्यादा है। पिछले हफ्ते जब अफगानिस्तान में संकट बढ़ता दिखा तब भारत ने देश में प्रवेश के लिए वीजा के आवेदनों को ट्रैक करने के लिए ई-वीजा की एक नई श्रेणी शुरू की। इसके जरिए जारी हुआ वीजा छह महीनों तक वैध होता है। जिसके बाद बड़ी संख्या में अफगान नागरिकों ने अपना रजिस्ट्रेशन भी करवाया हुआ है।
पिछले ही हफ्ते कनाडा ने 20,000 अफगान शरणार्थियों को फिर से बसाने के लिए खुद को प्रतिबद्ध बताया है। कनाडा के आव्रजन मंत्री मार्को मेंडिसीनो ने कहा कि कनाडा अमेरिका या अन्य सहयोगियों की ओर से अतिरिक्त अफगान शरणार्थियों को लेने पर विचार करेगा। हमें सभी संभावनाओं के लिए दरवाजे खुले रखने चाहिए। उन्होंने कहा कि वे अफगान ही थे जिन्होंने मिशन के दौरान गठबंधन सहयोगियों की सहायता की थी। ये लोग हमारे मानवीय पुनर्वास कार्यक्रम के मानदंडों को भी पूरा करते हैं। ऐसे में मुझे लगता है कि हमें इस तरह की व्यवस्था पर विचार करने के लिए तैयार रहना चाहिए। कनाडा ने 2011 में अफगानिस्तान से अपने अधिकांश सैनिकों को वापस बुला लिया था, लेकिन 2014 तक इनमें से कुछ सैनिक अफगान सेना को ट्रेनिंग देने के लिए रुके थे।
ब्रिटेन ने मंगलवार को एक नए पुनर्वास कार्यक्रम के पहले वर्ष के दौरान तालिबान से भागने वाले 5,000 अफगानों के स्वागत की योजना की घोषणा की है। ब्रिटेन ने कहा है कि वह महिलाओं, लड़कियों और धार्मिक और अन्य अल्पसंख्यकों को प्राथमिकता देगा। ब्रिटिश प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन की अगुवाई वाली सरकार ने कहा कि यह कार्यक्रम दुभाषियों और अन्य कर्मचारियों को शरण देने से अलग है। इन लोगों ने अफगानिस्तान में ब्रिटिश फोर्सेज की तैनाती के दौरान ट्रांसलेटर का काम किया था।
पाकिस्तान ने आज अफगानिस्तान जाने वाली सभी उड़ानों को अस्थायी रूप से सस्पेंड कर दिया है। इसके बावजूद डूरंड लाइन पारकर बड़ी संख्या में अफगान लोग पाकिस्तान में घुस रहे हैं। इमरान खान ने जून में कहा था कि तालिबान के सत्ता में आने की स्थिति में पाकिस्तान अफगानिस्तान के साथ अपनी सीमा को सील कर देगा। लेकिन, सूत्रों के अनुसार सीमा पर सतर्कता की कमी के कारण बड़ी संख्या में अफगान नागरिक भागकर पाकिस्तान में घुस रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक पाकिस्तान में इस समय 30 लाख अफगान शरणार्थी मौजूद हैं।
भारत ने लगाए हैं करोड़ों डॉलर : द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक 2001-2002 में भारतीय विदेश मंत्रालय और सुरक्षा एजेंसियों ने Ayni में इस सैन्य बेस के विकास का प्रस्ताव रखा और पूर्व रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नैंडिस ने इसका समर्थन किया। भारतीय वायुसेना ने एयर कॉमडोर नसीम अख्तर से एयरबेस पर काम करने को कहा। भारत सरकार ने इसके लिए बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन (BRO) की टीम की मदद भी ली।
भारतीय टीम न हैंगर, ओवरहॉलिंग और रीफ्यूलिंग क्षमता पर भी काम किया। रिपोर्ट के मुताबिक एयरचीफ मार्शल धनोआ को साल 2005 में इस बेस का फर्स्ट बेस कमांडर नियुक्त किया गया। पहली बार नरेंद्र मोदी सरकार में फाइटर प्लेन्स की पहली बार अंतरराष्ट्रीय तैनाती की गई।
अमेरिका के अफगानिस्तान से निकलने के साथ ही, चीन की निगाहें इस क्षेत्र पर टिकेंगी और वह मध्य एशिया के देशों में दखल बढ़ाने की कोशिश करेगा। ताजिकिस्तान में वायुसेना के Ayni एयरबेस से भारत को ऑपरेशन और क्षेत्रीय सहयोग और संबंध की दिशा में अहम क्षमता हासिल होगी।
पाकिस्तान को शिकस्त : पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से ताजिकिस्तान सिर्फ 20 किमी दूर है। यूरेशियन टाइम्स की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि पाकिस्तान की निगाहें ताजिकिस्तान में भारत की सैन्य तैनाती पर जमी रही हैं। अफगानिस्तान हो या ईरान, पाकिस्तान भारत की मौजूदगी को अपने लिए खतरा समझता है। भारत के लिए भी यह बेस इसलिए और अहम हो जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सियाचिन ग्लेशियर में भारत को पाकिस्तानी सैनिकों के ऊपर बढ़त मिल सकती है।
सूत्रों के हवाले से द प्रिंट की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारतीय वायुसेना के फाइटर ताजिकिस्तान से पेशावर को निशाना बना सकते हैं जिससे पाकिस्तान के संसाधन खतरे में आ जाएंगे। युद्ध की स्थिति में पाकिस्तान को पूर्व से पश्चिम में जाना पड़ेगा जिससे भारत के साथ उसका सुरक्षातंत्र कमजोर पड़ जाएगा।’

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