अफगानिस्तान में तालिबान के हाथ अत्याधुनिक हथियारों के आने से रूस परेशान है। संयुक्त राष्ट्र महासभा की 76वें सत्र में हिस्सा लेने न्यूयॉर्क पहुंचे रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने इसपर गंभीर चिंता भी जताई है। उन्होंने अफगानिस्तान से अमेरिका और नाटो सैनिकों की जल्दबाजी में वापसी की आलोचना करते हुए कहा कि यह परिणाम का विश्लेषण किए बिना किया गया था।
रूसी विदेश मंत्री ने अमेरिका को खूब कोसा : लावरोव ने कहा कि अमेरिका के अफगानिस्तान को जल्दीबाजी में छोड़ने से भारी मात्रा में सैन्य उपकरण वहीं रह गए। जाहिर है, हम सभी को यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि इन हथियारों का उपयोग गैर-रचनात्मक उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाए। दरअसल, रूस को चिंता है कि तालिबान के आतंकी इन हथियारों का इस्तेमाल पड़ोसी देशों की शांति को बिगाड़ने के लिए कर सकते हैं।
तालिबान सरकार को मान्यता देने पर क्या बोले लावरोव? : अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को मान्यता देने के सवाल पर रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने साफ-साफ जवाब नहीं दिया। उन्होंने कहा कि वह रूस तालिबान की अंतरराष्ट्रीय मान्यता के संबंध में किसी भी बातचीत से अनजान हैं। लावरोव ने यह भी कहा कि मास्को को तालिबान से अपने देश मे राजदूत नियुक्त करने की अनुमति के लिए कोई अनुरोध नहीं मिला।
तालिबान के हाथ लगीं मिसाइलें : अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद आतंकियों के हाथ कई घातक हथियार लगे हैं। इनमें 100 से अधिक मैन पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम (MANPADS) भी शामिल हैं। ये हथियार आसानी से किसी यात्री हवाई जहाज या फिर हेलिकॉप्टर को मार गिरा सकते हैं। सबसे बड़ा खतरा यह है कि इन हथियारों को तालिबानी लड़ाके अपने कंधों पर उठाए कहीं से भी फायर कर सकते हैं।
तालिबान के पास बिलियन डॉलर के अमेरिकी हथियार : अमेरिकी अधिकारियों का दावा है कि तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद करीब 28 बिलियन डॉलर के हथियारों को जब्त किया है। ये हथियार अमेरिका ने 2002 और 2017 के बीच अफगान बलों को दिया था। एक अधिकारी ने नाम न छापने के शर्त पर बताया कि जो हथियार नष्ट नहीं हुए हैं वे अब तालिबान के कब्जे में हैं।
क्या होते हैं MANPADS : मैन पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम दरअसल कंधे पर उठाकर फायर करने वाला एक सरफेस टू एयर मिसाइल सिस्टम होता है। यह हथियार कम ऊंचाई पर उड़ने वाले एयरक्राफ्ट, अमूमन हेलिकॉप्टरों को आसानी से निशाना बना सकता है। 1950 के दशक से अमेरिका, रूस, ब्रिटेन समेत कई देशों की सेना इस हथियार का इस्तेमाल कर रही है।