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November 25, 2024
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राजनीति

क्या दल बदल कानून लगेगा? मेघालय में कांग्रेस छोड़ TMC में जा रहे 12 विधायक

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने मेघालय में कांग्रेस को बड़ा झटका दिया है। मेघालय में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को लगे एक बड़े झटके में, उसके 17 में से 12 विधायक पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। दरअसल विधानसभा में विपक्ष के नेता संगमा कांग्रेस के हाईकमान से नाखुश चल रहे थे। ऐसे में मेघालय में बिना चुनाव लड़े ही टीएमसी अब मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई है। पूर्वोत्तर में कांग्रेस को यह सबसे बड़ा झटका है। वहीं पाला बदलने वाले इन विधायकों पर दलबदल कानून (What Is Anti Defection Law) नहीं लागू होगा वो क्यों आइए जानते हैं…
क्या है दल-बदल कानून? : बात साल 1967 की है जब हरियाणा के एक विधायक ‘गयालाल’ ने एक दिन में तीन बार पार्टी बदली। इसके बाद गयालाल जैसे जनप्रतिनिधियों से बचने के लिए और इस प्रथा को बंद करने के लिए 1985 में 52वां संविधान संशोधन किया गया। संविधान में 10वीं अनुसूची जोड़ी गई। इस अनुसूची में दल-बदल विरोधी कानून को शामिल किया गया।
क्या हैं दल-बदल विरोधी कानून के पॉइंट्स : दल-बदल विरोधी कानून के तहत जनप्रतिनिधि को अयोग्य घोषित किया जा सकता है यदि एक निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है। इसके अलावा यदि कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है। या फिर किसी सदस्य द्वारा सदन में पार्टी के पक्ष के विपरीत वोट यानी क्रॉस वोटिंग की जाती है। वहीं कोई सदस्य स्वयं को वोटिंग से अलग रखता है यानी वॉक आउट करता है, तब भी वह अयोग्य घोषित किया जा सकता है। इसके साथ ही अग छह महीने की समाप्ति के बाद कोई मनोनीत सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है, तब भी वह अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
कौन जनप्रतिनिधि को घोषित करेगा अयोग्य? : दल-बदल कानून के मुताबिक सदन के अध्यक्ष के पास सदस्यों को अयोग्य करार देने संबंधी निर्णय लेने की ताकत है। यदि सदन के अध्यक्ष के दल से संबंधित कोई शिकायत प्राप्त होती है तो सदन द्वारा चुने गए किसी अन्य सदस्य को इस संबंध में निर्णय लेने का अधिकार है।
क्यों मेघालय में विधायकों पर लागू नहीं होगा कानून? : इस कानून में कुछ ऐसी विशेष परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है, जिनमें दल.बदल करने वाले जनप्रतिनिधि को अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता। इस कानून में एक राजनीतिक दल को किसी अन्य राजनीतिक दल में विलय करने की अनुमति है। शर्ते इतनी है कि उस दल के न्यनूतम दो तिहाई जनप्रतिनिधि विलय के पक्ष में हों। ऐसी स्थिति में जनप्रतिनिधियों पर दल-बदल कानून लागू नहीं होगा और न ही राजनीतिक दल पर। सदन के अध्यक्ष को इस कानून से छूट प्राप्त है। मेघायल में कांग्रेस के साथ यही हुआ है चूंकि कांग्रेस के दो तिहाई से ज्यादा विधायकों ने पाला बदला है। ऐसे में उन पर दलबदल कानून नहीं लागू होगा।

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