डूरंड रेखा विवाद को लेकर पाकिस्तान-तालिबान के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। डूरंड रेखा अफगानिस्तान और पाकिस्तान दोनों के लिए एक रणनीतिक चिंता का विषय है, लेकिन इस क्षेत्र पर विवाद इस्लामाबाद ने इसे अपने अस्तित्व संबंधी एक प्रमुख चिंता के रूप में बताया है। इसी माह के आरंभ में पाकिस्तान ने तालिबान को धमकी देते हुए कहा था कि यदि सीमा पर बाड़ लगाने से इंकार किया तो अफगानियों के डूरंड रेखा के आर-पार जाने पर रोक लगा दी जाएगी। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार डूरंड रेखा का हवाला देते हुए पाकिस्तान तालिबान को ब्लैकमेल कर रहा है। वहीं तालिबान सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि डूरंड रेखा के पास इस तरह की शर्तें अस्वीकार हैं।
बता दें कि डूरंड रेखा अफगानिस्तान और पाकिस्तान में पारंपरिक पश्तूनों को विभाजित करती है। हाल में ही पाकिस्तान को अफगानिस्तान के नए शासक तालिबान ने बड़ा झटका दिया और डूरंड रेखा पर तारबंदी का विरोध किया है। पश्तून टीवी से तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान के साथ साझा की जाने वाली 2,640 किलोमीटर की सीमा पर तारबंदी करने के बारे में चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि वो इसके लिए सहमत नहीं हैं। इस पर उन्होंने अपनी सहमति नहीं दी है।
तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने एरियाना न्यूज के साथ एक साक्षात्कार में इस्लामाबाद के हस्तक्षेप पर टिप्पणी करते हुए कहा, “मुझे 100 प्रतिशत कहना है कि हम नहीं चाहते कि पाकिस्तान सहित कोई भी इस मामले में हस्तक्षेप करे। हम एक स्वतंत्र देश हैं। हम इन हस्तक्षेपों को स्वीकार नहीं करते हैं। पाकिस्तान एक अलग देश है। हम उनके मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते हैं और वे अफगानिस्तान के मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकते।”
इससे पहले एक बार तालिबान के प्रवक्ता ने सीमा पर तारबंदी का विरोध किया था तो पाकिस्तान ने शुरुआती अक्टूबर माह में चमन बार्डर को बंद कर दिया था जो अफगानिस्तान के लिए काफी महत्वपूर्ण है। यहां से हर दिन अफगान के लोगों समेत हजारों ट्रकों की आवाजाही होती है। 1893 में सर हेनरी मोर्टिमर डूरंड के नेतृत्व में ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासक द्वारा अफगानिस्तान के तत्कालीन अमीर, अब्दुर रहमान के साथ एक समझौते के माध्यम से सीमांकन किया गया था। ये सीमांकन करीब 2,640 मील तक है। इस सीमांकन रेखा को डूरंड रेखा के रूप में जाना जाता है।
डूरंड लाइन 19वीं सदी में ब्रिटिश और रूसी साम्राज्य के बीज जद्दोजहद की विरासत का नतीजा है जहां अंग्रजों अफगानिस्तान को एक बफर स्टेट (दो बड़े देशों के बीच एक छोटा देश) की तरह देखा जिससे रुस पूर्व में अपना विस्तार ना कर सके। इसी वजह से 12 नवंबर 1893 को ब्रिटिश अधिकारी सर हेनरी मोर्टिमेर डूरंड और अफगान शासक आमिर अब्दुर रहमान में एक समझौता हुआ जिसके तहत डूरंड लाइन का जन्म हुआ।