तालिबान का नंबर दो नेता और दोहा में राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख मुल्ला अब्दुल गनी बिरादर 20 साल बाद पहली बार काबुल पहुंचा है। यहां वह तालिबान के नेताओं के अलावा पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और अब्दुल्ला अब्दुल्ला के साथ बैठक करेगा। माना जा रहा है कि मुल्ला बरादर को ही अफगानिस्तान का अगला राष्ट्रपति बनाया जाएगा। मुल्ला बरादर ने ही अपने बहनोई मुल्ला उमर के साथ मिलकर तालिबान की स्थापना की थी।
पाकिस्तानी जेल में 8 साल रहा कैद : तालिबान का सह-संस्थापक और मुल्ला उमर के सबसे भरोसेमंद कमांडरों में से एक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को 2010 में पाकिस्तान के कराची में गिरफ्तार कर लिया गया था। लेकिन, डोनाल्ड ट्रंप के निर्देश और तालिबान के साथ डील होने के बाद पाकिस्तान ने इसे 2018 में रिहा कर दिया था।
अफगान युद्ध का निर्विवाद नेता बना बरादर : तीन साल पहले जेल से रिहा होने के बाद तालिबान नेता अब्दुल गनी बरादर अफगानिस्तान में 20 साल से चल रहे युद्ध का निर्विवाद विजेता बनकर उभरा। बरादर का कद तालिबान के प्रमुख हैबतुल्लाह अखुंदजादा से नीचे है। इसके बावजूद उसे तालिबान का हीरो माना जा रहा है, वहीं अखुंदजादा अब भी पर्दे के पीछे से छिपकर ही अपने आतंकी संगठन को चला रहा है।
बरादर का बहनोई था मुल्ला उमर : अब्दुल गनी बरादर की जवानी अफगानिस्तान के निरंतर और निर्मम संघर्ष की कहानी है। 1968 में उरुजगान प्रांत में जन्मा बरादर शुरू से ही धार्मिक रूप से काफी कट्टर था। बरादर ने 1980 के दशक में सोवियत संघ के खिलाफ अफगान मुजाहिदीन में लड़ाई लड़ी। 1992 में रूसियों को खदेड़ने के बाद अफगानिस्तान प्रतिद्वंद्वी सरदारों के बीच गृहयुद्ध में घिर गया। जिसके बाद बरादर ने अपने पूर्व कमांडर और बहनोई, मुल्ला उमर के साथ कंधार में एक मदरसा स्थापित किया।
तालिबान की स्थापना मुल्ला उमर ने की थी। मुस्लिम धार्मिक नेता मुल्ला उमर 1979 में सोवियत संघ के हमले के बाद जिहादी बना था। तालिबान की स्थापना के बाद से मुल्ला उमर इस आतंकी संगठन का सरगना बन गया था। ये इतना बड़ा वांडेट आतंकी था कि अमेरिका ने इस एक आंख वाले व्यक्ति के सिर पर एक करोड़ डॉलर का इनाम रखा था। मुल्ला उमर का ठिकाना इतना गोपनीय था कि अफगानिस्तान का चप्पा-चप्पा छानने के बाद भी अमेरिका को इसका कोई सुराग नहीं मिला था। साल 2015 में मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला मोहम्मद याकूब ने अपने पिता की दो साल पहले मौत की पुष्टि की थी। मुल्ला उमर अल कायदा चीफ ओसामा बिन लादेन का भी काफी करीबी था। मुल्ला का जन्म 1960 में देश के दक्षिण में कंधार प्रांत के खाकरेज जिले के चाह-ए-हिम्मत नामक गांव में हुआ था। तालिबान अपने सर्वोच्च नेता को मुल्ला मोहम्मद उमर ‘मुजाहिद’ के नाम से संबोधित करता है। वह होतक जनजाति के तोम्जी कबीले से संबंधित था।
वर्तमान में तालिबान की कमान हिबतुल्लाह अखुंदजादा के पास है। इसे तालिबान के वफादार नेताओं के रूप में जाना जाता है। अखुंदजादा इस्लामी कानूनी का बड़ा विद्वान होने के साथ तालिबान का सर्वोच्च नेता है। तालिबान के राजनीतिक, धार्मिक और सैन्य मामलों पर अंतिम फैसला हिबतुल्लाह अखुंदजादा ही करता है। अखुंदजादा 2016 में तालिबान का सरगना बना था। उससे पहले तालिबान का चीफ अख्तर मंसूर नाम का आतंकी था। 2016 में अफगान-पाकिस्तान सीमा के पास अमेरिकी ड्रोन हमले में अख्तर मंसूर की मौत हुई थी। 2016 में अचानक गायब होने से पहले हिबतुल्लाह अखुंदजादा दक्षिण-पश्चिमी पाकिस्तान के एक कस्बे कुचलक में एक मस्जिद में पढ़ाया करता था। यहीं से वह तालिबान के संपर्क में आया और इस खूंखार आतंकी संगठन के शीर्ष पद पर पहुंचा। माना जाता है कि उसकी उम्र लगभग 60 वर्ष है और उसका ठिकाना अज्ञात है।
मुल्ला मोहम्मद याकूब तालिबान की स्थापना करने वाले मुल्ला उमर का बेटा है। याकूब तालिबान के सैन्य अभियानों का चीफ है। उसके ही इशारे पर तालिबान के आतंकी हमले करते हैं। स्थानीय मीडिया रिपोर्टों ने कहा है कि वह अफगानिस्तान के अंदर मौजूद है और अफगान सेना पर हमले का संचालन कर रहा है। उत्तराधिकार के विभिन्न संघर्षों के दौरान उसे तालिबान का समग्र नेता घोषित किया गया था। लेकिन उसने 2016 में हिबतुल्लाह अखुंदजादा को आगे करके तालिबान का सरगना घोषित कर दिया। माना जाता है कि याकूब अपने संगठन में तनाव को कम करना चाहता था क्योंकि उसके पास युद्ध के अनुभव की कमी थी और वह उम्र में भी कई नेताओं से बहुत छोटा था। उस समय याकूब की उम्र 30 साल के आसपास थी।
सिराजुद्दीन मुजाहिदीन कमांडर जलालुद्दीन हक्कानी का बेटा है। सिराजुद्दीन हक्कानी अपने पिता के बनाए हक्कानी नेटवर्क का नेतृत्व करता है। हक्कानी समूह पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर तालिबान की वित्तीय और सैन्य संपत्ति की देखरेख करता है। अमेरिका ने सिराजुद्दीन को मोस्ट वॉन्टेड घोषित कर रखा है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि हक्कानी ने ही अफगानिस्तान में आत्मघाती हमलों की शुरुआत की थी। हक्कानी नेटवर्क को अफगानिस्तान में कई हाई-प्रोफाइल हमलों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। उसने तत्कालीन अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई की हत्या का प्रयास भी किया था। इसके अलावा हक्कानी नेटवर्क ने भारतीय दूतावास पर आत्मघाती हमला भी किया था। माना जाता है कि सिराजुद्दीन हक्कानी का उम्र 40 से 50 के बीच में है, जो अज्ञात ठिकाने से अपने नेटवर्क को संचालित करता है।
तालिबान के सह-संस्थापकों में से एक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर तालिबान के राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख है। इस समय वह तालिबान के शांति वार्ता दल का नेता है, जो कतर की राजधानी दोहा में एक राजनीतिक समझौते की कोशिश करने का दिखावा कर रहा है। मुल्ला उमर के सबसे भरोसेमंद कमांडरों में से एक अब्दुल गनी बरादर को 2010 में दक्षिणी पाकिस्तानी शहर कराची में सुरक्षाबलों ने पकड़ लिया था, लेकिन बाद में तालिबान के साथ डील होने के बाद पाकिस्तानी सरकार ने 2018 में उसे रिहा कर दिया था।
तालिबान की सरकार में उप मंत्री पद पर रहा चुका शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई कट्टर धार्मिक नेता है। वह पिछले एक दशक से दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय में रह रहा है। 2015 में स्टानिकजई को तालिबान के राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख बनाया गया था। उसने अफगान सरकार के साथ शांति वार्ता में हिस्सा लिया है। अमेरिका के साथ हुए शांति समझौते में भी स्टानिकजई शामिल था। उसने कई देशों की राजनयिक यात्राओं पर तालिबान का प्रतिनिधित्व किया है।
1996 में भी तालिबान का रणनीतिकार था बरादर : मुल्ला उमर के बाद तालिबान के दूसरे नेता अब्दुल गनी बारदर को तब भी जीत का हीरो माना गया। कहा जाता है कि तालिबान के लिए बारदर ने ही तब रणनीति बनाई थी। बरादर ने पांच साल के तालिबान शासन में सैन्य और प्रशासनिक भूमिकाएं निभाईं। 2001 में जब अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया तब बारदर देश का उप रक्षा मंत्री था। तालिबान के 20 साल के निर्वासन के दौरान, बरादर को एक शक्तिशाली सैन्य नेता और एक सूक्ष्म राजनीतिक संचालक होने की प्रतिष्ठा मिली।