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September 21, 2024
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भारत को धौंस दिखा रहे : तालिबान, अल कायदा, हिज्बुल्लाह…, कतर का आतंकी कनेक्शन तो जानें

बीजेपी नेता नूपुर शर्मा की पैगंबर मोहम्मद पर की गई टिप्पणी को लेकर खाड़ी देशों में बवाल मचा हुआ है। सबसे पहले कतर ने इस मुद्दे को लेकर भारत के खिलाफ मोर्चा खोला था। कतर ने उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू के दौरे की परवाह न करते हुए भारतीय राजदूत को तलब किया। साथ ही भारत सरकार से सार्वजनिक माफी मांगने की अपील भी कर डाली। कतर ने इस बयान को पूरी दुनिया के मुसलमानों का अपमान बताकर प्रचारित किया। इस कारण खाड़ी देशों, खासकर कतर में भारतीय सामानों का बहिष्कार शुरू हो गया। दरअसल, कतर का इस्लाम को लेकर भारत विरोध एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। कतर पूरी दुनिया में सऊदी अरब को पछाड़कर इस्लामी देशों का रहनुमा बनना चाहता है। यही कारण है कि प्राकृतिक गैस संपन्न यह छोटा सा अरब देश आतंकवादी संगठनों की फंडिंग करने से पीछे नहीं हटता है।

कतर के दुनियाभर के कई आतंकी समूहों से संबंध : कतर पर तालिबान, इस्लामिक स्टेट, अल कायदा, हिज्बुल्लाह, मुस्लिम ब्रदरहुड, अल नुसरा फ्रंट समेत दुनियाभर के कई खूंखार आतंकवादी संगठनों से संबंध होने के आरोप लगते रहे हैं। कतर पर इन आतंकी संगठनों की फंडिंग करने और पनाह देने के आरोप भी लगे हैं। इसके बावजूद यह खाड़ी देश अपनी अमीरी के दंभ में इस्लाम को लेकर राजनीतिक एजेंडे को चलाने से बाज नहीं आता है। 2014 में कतर पर आईएसआईएस की फंडिंग करने, 2020 में हिजबुल्लाह को आर्थिक मदद देने और जून 2021 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नामित आतंकवादी समूह अल नुसरा फ्रंट को पैसे भेजने के आरोप लगे। इसके अलावा तालिबान के साथ कतर के रिश्ते तो जगजाहिर हैं। यही कारण है कि पिछले साल तालिबान के साथ बातचीत में कतर की भूमिका काफी महत्वपूर्ण मानी गई थी।

कतर ने दोहा में खुलवाया था तालिबान का राजनीतिक कार्यालय : कतर ने अफगानिस्तान से खदेड़े जाने के बाद तालिबान की खुलकर मदद की थी। इसी कारण तालिबान ने कतर की राजधानी दोहा में अपना राजनीतिक कार्यालय खोला था। इसी कार्यालय के जरिए तालिबान ने अमेरिका के साथ शांति समझौता किया। इसी के चलते तालिबान को अफगानिस्तान में पकड़ जमाने का मौका मिल गया। तालिबान के इस कार्यालय को चलाने के लिए फंडिंग कतर ने की। कतर के ही दिए विमान में तालिबान के नेता उड़ान भर पूरी दुनिया की सैर करते थे। यह वही तालिबान है, जिसने अफगानिस्तान में लाखों लोगों का कत्लेआम किया, महिलाओं पर भयंकर जुल्म ढाहे और लड़कियों की शिक्षा को बंद कर दिया। अब उसी तालिबान ने नागरिक सरकार को बंदूक के दम पर अपदस्थ कर अफगानिस्तान पर कब्जा जमा लिया है।

अल नुसरा फ्रंट को दिए लाखों-करोड़ों डॉलर : द टाइम्स ऑफ लंदन के अनुसार, कतर के शाह के एक निजी कार्यालय के जरिए अल नुसरा फ्रंट को अरबों डॉलर की मदद दी गई थी। सीरियाई संगठनों ने दावा किया था कि इस फंडिंग के पीछे दो कतरी बैंक, कई दान, धनी व्यवसायी, प्रमुख राजनेता और नागरिक शामिल थे। लंदन में उच्च न्यायालय में दायर की गई याचिका में कहा गया था कि कतर के इन संस्थाओं, राजनेताओं और शाही परिवार ने मुस्लिम ब्रदरहुड, सुन्नी इस्लामी संगठन के समन्वय में काम करने वाले अल नुसरा फ्रंट की मदद की थी। सीरियाई लोगों द्वारा दायर कानूनी कार्रवाई के अनुसार, अल-नुसरा फ्रंट को फंड देने में सबसे बड़ी भूमिका कतरी अमीरों की थी। अल नुसरा फ्रंट को अमेरिका, ब्रिटेन और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने आतंकवादी संगठन के रूप में नामित किया है।
आईएसआईएस और हिजबुल्लाह की फंडिंग का आरोप : जर्मनी के पूर्व विकास मंत्री गर्ड मुलर ने 2014 में कतर पर इस्लामिक स्टेट को वित्तपोषित करने का आरोप लगाया था। यह वही साल था, जब इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों ने सीरिया और इराक में धर्म के नाम पर जमकर तबाही मचाई थी। 2020 में जेरूसलम पोस्ट ने दावा किया था कि आतंकवादी संगठन हिज़्बुल्लाह के कथित वित्तपोषण के लिए कतर के शासन की जांच के लिए अमेरिका ने एक टीम भेजी थी। अमेरिका और यूरोपीय संघ हिजबुल्लाह को आतंकवादी संगठन का दर्जा दिया हुआ है। हिजबुल्लाह लेबनान का शिया आतंकवादी संगठन है, जिसके निशाने पर इजरायल रहता है।

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