सीपीईसी को लेकर डींगे हांकने वाला पाकिस्तान अब गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है। इस बीच चीन ने भी भ्रष्टाचार, परियोजनाओं में लेट लतीफी और अपने नागरिकों पर हो रहे हमलों के खिलाफ सीपीईसी में निवेश करना लगभग बंद कर दिया है। जिसके बाद से टेंशन में आए पाकिस्तान ने अब चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे में अपने खास दोस्त तुर्की को शामिल करने का प्रस्ताव रखा है। तुर्की के शामिल होते ही चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा चीन, पाकिस्तान और तुर्की के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते में बदल जाएगा। सीपीईसी 60 अरब डॉलर की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर इसका मार्ग गुजरने को लेकर भारत ने चीन के समक्ष विरोध दर्ज कराया है।
तुर्की को शामिल करवाना चाहते हैं शहबाज : कराची शिपयार्ड एंड इंजीनियरिंग वर्क्स को संबोधित करते पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा कि सीपीईसी के जरिए वित्तीय और औद्योगिक गतिविधियों के विकसित होने से व्यापार में कई गुना बढ़ोत्तरी की संभावना है। सीपीईसी परियोजना क्षेत्रीय संपर्क और व्यापार बढ़ाने की हमारी आकांक्षा को मूर्त रूप देने वाला है, जिसके मुख्य केंद्र में ग्वादर बंदरगाह है। उन्होंने कहा कि मैं इस अवसर का उपयोग सीपीईसी को चीन, पाकिस्तान और तुर्की के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता में तब्दील करने का प्रस्ताव करने के लिए करना चाहूंगा तथा इसकी असीम क्षमताओं से हमारे राष्ट्रों को लाभान्वित होने दिया जाए।
सीपीईसी के नाम पर 21.7 अरब डॉलर का कर्ज : सीपीईसी प्रोजेक्ट के लिए पाकिस्तान दिसंबर, 2019 तक चीन से करीब 21.7 अरब डॉलर कर्ज ले चुका था। इनमें से 15 अरब डॉलर का कर्ज चीन की सरकार ने और बाकी का 6.7 अरब डॉलर वहां के वित्तीय संस्थानों से लिया गया है। अब पाकिस्तान के सामने इस कर्ज को वापस लौटाना बड़ी समस्या बन गया है। पाक के पास महज 10 अरब डॉलर का ही विदेशी मुद्रा भंडार ही है और वह इतनी बड़ी धनराशि चीन को वापस नहीं कर सकता।
सीपीईसी बना चीन के गले की फांस : चीन पाक इकोनॉमिक कॉरिडोर अब ड्रैगन के गले की फांस बन गया है। अरबों का पैसा लगाने के बाद भी चीन को वह फायदा नहीं मिल रहा है जिसके लिए उसने 60 अरब डॉलर का निवेश किया था। पाकिस्तान में इसे लेकर राजनीति भी चरम पर है। वहीं भ्रष्टाचार में डूबे पाकिस्तानी नेता सड़क निर्माण कार्य में कोताही भी बरत रहे हैं। सीपीईसी में 60 अरब डॉलर का निवेश करने के बाद चीन को पूरी योजना पर पानी फिरता दिख रहा है। गिलगित बाल्टिस्तान और पीओके के स्थानीय लोग भी इस प्रोजक्ट के खिलाफ हैं। पाकिस्तान की राजनीति भी चीन के लिए समस्या बनी हुई है। कबायली इलाकों में काम कर रहे चीनी नागरिकों पर हमले भी बढ़े हैं।
चीन के कर्ज से आर्थिक गुलाम बना पाकिस्तान : पाकिस्तान ने सीपीईसी के नाम पर चीन से इतना कर्ज ले लिया है कि, वह अगले 100 साल में भी उसे चुका नहीं पाएगा। कंगाली की हालत से गुजर रहे पाकिस्तान ने चीन से अपने 3 अरब डॉलर के कर्ज को चुकाने के लिए हाल में ही मोहलत मांगी थी। जिसके बाद चीन ने पाकिस्तान के इस अनुरोध को सिरे से खारिज कर दिया था। पाकिस्तान पर 30 दिसंबर 2020 तक कुल 294 अरब डॉलर का कर्ज था जो उसकी कुल जीडीपी का 109 प्रतिशत है। आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि कर्ज और जीडीपी का यह अनुपात वर्ष 2023 के अंत तक 220 फीसदी तक हो सकता है।
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