अफगानिस्तान में प्रतिरोध का केंद्र बनी पंजशीर घाटी को तालिबान आतंकवादियों के चंगुल से बचाने के लिए अहमद मसूद के बेटे नेतृत्व में 9 हजार विद्रोहियों ने मोर्चा संभाल लिया है। पंजशीर घाटी की पहाड़ी चोटियों पर मसूद के जवानों ने हैवी मशीन गन तैनात कर दिए हैं जिससे तालिबानियों का शिकार किया जा सके। इसके अलावा मोर्टार और निगरानी चौकी भी बनाई गई है। ये सभी जवान नैशनल रेजिस्टेंस फ्रंट का हिस्सा हैं जो अफगानिस्तान में तालिबानराज का विरोध करने में सबसे आगे है।
अहमद मसूद और अमरुल्ला सालेह के नेतृत्व में जमे ये जवान सैनिक की वर्दी में हैं और अमेरिका निर्मित हंवी में बैठकर पूरे इलाके में गश्त कर रहे हैं। उनके साथ मशीनगन से लैस गाड़ियां भी चल रही हैं। इन जवानों के पास असॉल्ट राइफल, रॉकेट से दागे जाने वाले ग्रेनेड और संपर्क करने के लिए वॉकी टॉकी सेट हैं। पंजशीर की बर्फ से ढंकी चोटियों के बीच में ये जवान राजधानी काबुल से मात्र 80 किमी दूर तालिबान से मोर्चा ले रहे हैं।
घाटी में घुसने का रास्ता बहुत ही संकरा : एक पंजशीरी योद्धा ने कहा, ‘हम तालिबानियों का चेहरा जमीन में रगड़ने जा रहे हैं।’ इसके बाद उनके अन्य साथी अल्लाह हू अकबर के नारे लगाने लगते हैं। रणनीतिक रूप से बेहद अहम इस घाटी में मूल रूप से ताजिक मूल के लोग रहते हैं। अत्यधिक ऊंची ऊंची पहाड़ियों की वजह ये घाटी पंजशीर के जवानों को प्राकृतिक सुरक्षा मुहैया कराती है। साथ ही इस घाटी में घुसने का रास्ता बहुत ही संकरा है।
इन पंजशीरी योद्धाओं के नेता और पंजशीर के शेर कहे जाने वाले अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद ने पिछले हफ्ते वॉशिंगटन पोस्ट में लिखा था, ‘अगर तालिबान के वॉरलॉर्ड हम पर हमला करते हैं तो उन्हें हमारी ओर करारा जवाब मिलेगा।’ अहमद शाह मसूद के नेतृत्व में पंजशीरी योद्धाओं ने सोवियत संघ और तालिबान को करारा जवाब दिया था जिससे वे इस घाटी पर कभी फतह हासिल नहीं कर पाए।
तालिबान ने पंजशीर पर कब्जे के लिए लड़ाकुओं को भेजा : तालिबान ने ऐलान किया है कि उसने पंजशीर पर कब्जे के लिए हजारों की तादाद में लड़ाकुओं को भेजा है। हालांकि अभी दोनों ही पक्षों के बीच बातचीत का दौर जारी है। मसूद ने कहा है कि वह तालिबान के साथ युद्ध और बातचीत दोनों के लिए तैयार हैं। पंजशीर के विद्रोहियों में 9 हजार जवान शामिल हैं जो स्थानीय मिलिशिया और अफगान सेना के पूर्व जवान हैं। यही पर पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह भी डटे हुए हैं।