भारत और रूस की दोस्ती को 50 साल पूरे हो गए हैं। बीते सोमवार को दोनों देशों ने शांति, मित्रता और सहयोग संधि की 50वीं वर्षगांठ मनाई है। 9 अगस्त 1971 को भारत और तत्कालीन सोवियत संघ (वर्तमान रूस) ने चिरंजीवी दोस्ती के कागजों पर हस्ताक्षर किए थे। दोनों देशों के संबंधों की ताकत इतनी थी कि इसने तत्कालीन विश्व के समीकरण में आमूल परिवर्तन कर दिए। इतना ही नहीं, इससे न केवल दक्षिणी एशिया बल्कि अमेरिका और यूरोपीय देशों की विदेश नीति को भी प्रभावित किया था।
भारत के मुश्किल वक्त में रूस ने निभाई दोस्ती : 1971 में भारत के लिए हालात बिल्कुल भी अनुकूल नहीं थे। एक तरफ जहां तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों से त्रस्त जनता भारत में शरण लेने के लिए घुसी जा रही थी। वहीं, पाकिस्तान, अमेरिका और चीन का गठबंधन मजबूत होता जा रहा था। ऐसे में तीन दिशाओं से घिरे भारत की सुरक्षा को बड़ा खतरा पैदा हो गया था। अमेरिका और चीन दोनों ही प्रतिबंधों के बावदूद पाकिस्तान को चोरी-छिपे हथियार देकर सैन्य मदद कर रहे थे।
रूसी विदेश मंत्री ने भारत आकर किए थे समझौते पर हस्ताक्षर : ऐसे में सोवियत संघ के विदेश मंत्री अंद्रेई ग्रोमिको भारत आए और 1971 को आज ही के दिन उन्होंने भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह के साथ सोवियत-भारत शांति, मैत्री और सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किए। यह संधि दोनो देशों के दोस्ताना संबंधों में एक मील का पत्थर बन गई। इस संधि के तुरंत बाद सोवियत संघ ने ऐलान किया था कि भारत पर हमला उसके ऊपर हमला माना जाएगा। यही वह कारण है जिससे 1971 युद्ध के दौरान अमेरिकी नौसैनिक बेड़े को भारत के ऊपर हमला करने की हिम्मत नहीं हुई।
अब भारत और रूस के संबंधों पर उठ रहे सवाल : इन दिनों अंतराष्ट्रीय कूटनीति में जारी उतार-चढ़ाव को देखते हुए भारत और रूस के संबंधों पर सवाल उठाए जा रहे हैं। रूस ने हाल में ही अफगानिस्तान में लगातार बिगड़ते हालात को लेकर बुलाई गई एक बड़ी बैठक में आमंत्रित नहीं किया है। इस बैठक में रूस के अलावा पाकिस्तान, चीन और अमेरिका के शामिल होने की संभावना है। कतर में आयोजित होने वाली इस बैठक का नाम विस्तारिक ट्रोइका है। इससे पहले भी अफगानिस्तान को लेकर हुई बैठक में रूस ने भारत को नहीं बुलाया था। उस समय भी भारत-रूस संबंधों को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए गए थे।
क्या भारत-रूस में सबकुछ ठीक नहीं? : पिछले कई साल से भारत रूस संबंधों की मजबूती पर सवाल उठते रहे हैं। इसी साल की शुरूआत में दोनों देशों के बीच भारत-रूस शिखर सम्मेलन प्रस्तावित था। लेकिन, कोरोना वायरस के कारण इसे रद्द कर दिया गया। इस बैठक में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन खुद शामिल होने वाले थे। वर्ष 2000 के बाद यह पहला मौका है जब भारत और रूस के बीच शिखर सम्मेलन को टाला गया है। यह बैठक पिछले 20 सालों से लगातार आयोजित की जा रही थी।
रूस द्वारा प्रूडबॉय सैन्य परीक्षण मैदान में आयोजित इस युद्धाभ्यास में टी-90 मुख्य युद्धक टैंक और एमबीपी-3 इंफ्रेंट्री फाइटिंग व्हीकल (IFV) से भी गोलीबारी की जा रही है। दो हफ्ते तक चलने वाले इस युद्धाभ्यास में दोनों सेना के 250-250 सैनिक हिस्सा ले रहे हैं। रूसी मीडिया के अनुसार, इस दौरान दोनों देशों की सेनाएं लगभग 100 तरह के अलग-अलग सैन्य उपकरणों का इस्तेमाल करेंगी। टैंक और आईएफवी के अलावा इस युद्धाभ्यास में विभिन्न प्रकार के ग्रैड मल्टीपल रॉकेट लॉन्चर और मानव रहित हवाई वाहनों (ड्रोन) का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके अलावा रूस के दक्षिणी सैन्य जिले में तैनात लड़ाकू विमान और हेलिकॉप्टर जमीनी सेना को हवाई सहायता मुहैया करवा रहे हैं।
टी-90 टैंक रूस ही नहीं बल्कि भारतीय सेना का भी सबसे प्रमुख हथियार है। T-90S टैंक तीसरी पीढ़ी का मेन बैटल टैंक है। इसमें 125 एमएम की स्मूथबोर कैनन लगी होती है। यह टैंक सामान्य गोले दागने के अलावा कई तरह के अन्य हथियारों को भी फायर करने में सक्षम है। इस टैक में एक्सप्लोसिव रिएक्टिव आर्मर लगी होती है जो दुश्मन के किसी भी हमले को झेलने में सक्षम है। इस टैंक में लगी मिसाइल लो फ्लाइंग ऑब्जेक्ट्स जैसे हेलिकॉप्टर और छोटे ड्रोन को भी मार गिराने में सक्षम है। इसमें 7.62 मिलीमीटर की मशीनगन और 12.7 मिलीमीटर की एयर डिफेंस मशीनगन भी लगी होती है।
यह टैंक रूसी सेना में 1992 में शामिल हुआ था। 2001 में इस टैंक के पहले विदेश खरीदार के रूप में भारत ने रूस से संपर्क किया था। इस समझौते में भारत ने रूस से कुल 310 टैंक खरीदा। इसमें से 124 रूस से बनकर भारत को मिले थे,जबकि बाकी टैंक को भारत में ही ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड ने बनाया था। 2019 में भी भारत ने रूस से इस टैंक के 464 अतिरिक्त यूनिट को बनाने के लिए एक डील की थी। भारतीय सेना को उसका पहला टी-90एस टैंक 2004 में मिला था। यह दिन और रात में दुश्मन से लड़ने की क्षमता रखता है। इसमें 1000 हॉर्स पावर का शक्तिशाली इंजन लगा हुआ है। यह एक बार में 550 किमी की दूरी तय कर सकता है।
कुछ दिनों पहले भारतीय नौसेना ने भी इंद्र-2021 के तहत रूसी नौसेना के साथ युद्धाभ्यास किया था। फिनलैंड की खाड़ी में स्थित सेंट पीटर्सबर्ग में आयोजित इस युद्धाभ्यास में भारत की तरफ से आईएनएस तबर ने हिस्सा लिया था। आईएनएस तबर ने रूस के 325वें नौसना दिवस के अवसर पर आयोजित परेड में भी हिस्सा लिया था। सेंट पीटर्सबर्ग में आईएनएस तबर के चालक दल के सदस्यों ने रूसी नौसेना के साथ कई तरह के द्विपक्षीय चर्चाएं भी की थीं। इस युद्धाभ्यास का मकसद समुद्री खतरों से निपटने के लिए संयुक्त अभियान को बढ़ावा देना और समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करना था।
आईएनएस तबर भारतीय नौसेना के तलवार क्लास का तीसरा फ्रिगेट है। आईएनएस तबर रूस में ही बना हुआ युद्धपोत है। इसे भारतीय नौसेना में 19 अप्रैल 2004 को रूस के कलिनिनग्राद में शामिल किया गया था। इस युद्धपोत का संचालन भारतीय नौसेना की वेस्टर्न कमांड करती है। 3620 टन डिस्प्लेसमेंट वाले इस युद्धपोत की लंबाई 124.8 मीटर है। इसके पिछले हिस्से पर हेलिकॉप्टर डेक भी बना हुआ है। आईएनएस तबर की टॉप स्पीड 56 किलोमीटर प्रति घंटा है। इस युद्धपोत पर 18 ऑफिसर्स सहित 180 क्रू मेंबर तैनात होते हैं। इस युद्धपोत पर 24 की संख्या में Buk मिसाइल सिस्टम का नेवल वर्जन Shtil-1 तैनात है। Shtil-1 मीडियम रेंज की एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल है। इसके अलावा 8 की संख्या में इग्ला मैन पोर्टेबर एंटी एयर मिसाइल सिस्टम भी तैनात हैं। क्लब क्लास की एंटी शिप क्रूज मिसाइलों को फायर करने के लिए इसमें आठ वर्टिकल लॉन्चिंग ट्यूब भी लगे हुए हैं। दुश्मन के जमीनी और कम उंचाई पर उड़ने वाले हवाई निशानों को मारने के लिए इसमें A-190E नाम का 100 एमएम का मेन गन लगा हुआ है।
इन दिनों अंतराष्ट्रीय कूटनीति में जारी उतार-चढ़ाव को देखते हुए भारत और रूस के संबंधों पर सवाल उठाए जा रहे हैं। रूस ने हाल में ही अफगानिस्तान में लगातार बिगड़ते हालात को लेकर बुलाई गई एक बड़ी बैठक में आमंत्रित नहीं किया है। इस बैठक में रूस के अलावा पाकिस्तान, चीन और अमेरिका के शामिल होने की संभावना है। कतर में आयोजित होने वाली इस बैठक का नाम विस्तारिक ट्रोइका है। इससे पहले भी अफगानिस्तान को लेकर हुई बैठक में रूस ने भारत को नहीं बुलाया था। उस समय भी भारत-रूस संबंधों को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए गए थे।
पिछले कई साल से भारत रूस संबंधों की मजबूती पर सवाल उठते रहे हैं। इसी साल की शुरूआत में दोनों देशों के बीच भारत-रूस शिखर सम्मेलन प्रस्तावित था। लेकिन, कोरोना वायरस के कारण इसे रद्द कर दिया गया। इस बैठक में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन खुद शामिल होने वाले थे। वर्ष 2000 के बाद यह पहला मौका है जब भारत और रूस के बीच शिखर सम्मेलन को टाला गया है। यह बैठक पिछले 20 सालों से लगातार आयोजित की जा रही थी। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने पिछले साल दिसंबर में कहा था कि अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों के कारण रूस के साथ भारत की करीबी साझेदारी एवं विशेष संबंध कमजोर हो रहे हैं। रूस की सरकारी थिंक टैंक रशियन इंटरनेशनल अफेयर्स काउंसिल के एक कार्यक्रम में लावरोव ने आरोप लगाया था कि अमेरिका के कारण भारत हमसे दूर होता जा रहा है।
अमेरिका पर भारत से दोस्ती तोड़ने का आरोप : रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने पिछले साल दिसंबर में कहा था कि अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों के कारण रूस के साथ भारत की करीबी साझेदारी एवं विशेष संबंध कमजोर हो रहे हैं। रूस की सरकारी थिंक टैंक रशियन इंटरनेशनल अफेयर्स काउंसिल के एक कार्यक्रम में लावरोव ने आरोप लगाया था कि अमेरिका के कारण भारत हमसे दूर होता जा रहा है।