अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने सोमवार को कहा कि चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को इस तरह से नया रूप देना चाहता है जो उसके वर्चस्ववादी हितों की पूर्ति करे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत के साथ एक मजबूत द्विपक्षीय साझेदारी अधिक लचीले, क्षेत्रीय सुरक्षा संरचना में महत्वपूर्ण है। ऑस्टिन ने कैबिनेट सहयोगी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और भारतीय समकक्ष रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तथा विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ ‘टू प्लस टू’ मंत्रिस्तरीय बैठक में शुरुआती टिप्पणी में कहा, ‘‘चीन एक बड़ी चुनौती बन गया है।”
उन्होंने कहा, ‘‘हम सभी हिंद-प्रशांत में हमारे समक्ष मौजूद चुनौतियों को समझते हैं। चीन अपने वर्चस्ववादी हितों को पूरा करने के लिए क्षेत्र और अंतरराष्ट्रीय प्रणाली को अधिक व्यापक रूप से, नए सिरे से तैयार करना चाहता है। लेकिन जैसे ही हम अपने रक्षा समझौतों को लागू करते हैं और अपने सहयोग को अगले स्तर तक ले जाते हैं, मुझे यकीन है कि हम इस क्षेत्र में शक्ति के अनुकूल संतुलन को बनाए रख सकते हैं और इसे मजबूत कर सकते हैं।”
ऑस्टिन ने कहा कि भारत और अमेरिका ने एक साझेदारी बनाई है जो अब हिंद-प्रशांत में सुरक्षा की आधारशिला है। उन्होंने कहा, ‘‘आज हम कानून के शासन, समुद्री स्वतंत्रता और क्षेत्रीय शांति एवं सुरक्षा के समर्थन में सभी क्षेत्रों में और व्यापक रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक साथ मिलकर काम करने और समन्वय करने के लिए अमेरिका और भारतीय सेनाओं को तैनात कर रहे हैं।” अमेरिकी रक्षा मंत्री ने कहा, ‘‘ये महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं और अब ये पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं। जिन मूल्यों को हम साझा करते हैं उनकी रक्षा के लिए लोकतंत्रों को एक साथ खड़ा होना चाहिए।”
संवाददाता सम्मेलन में ऑस्टिन ने कहा कि ‘टू प्लस टू’ मंत्रिस्तरीय वार्ता कई चुनौतीपूर्ण मुद्दों पर संवाद के खुले माध्यमों को बनाए रखने के लिए उनकी गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाती है। उन्होंने कहा, ‘‘विशेष रूप से यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद जिस तरह के रणनीतिक खतरे उभरे हैं, ऐसे में यह पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम अपने साझा मूल्यों की रक्षा के लिए और अंतरराष्ट्रीय नियम-आधारित व्यवस्था को बनाए रखने के लिए एक साथ खड़े हों।” ऑस्टिन ने कहा, ‘‘इसलिए मेरा मानना है कि आज हमने जो निवेश किया है, वह यह सुनिश्चित करने में मदद करेगा कि सुरक्षित, खुले और समृद्ध हिंद-प्रशांत क्षेत्र का हमारा साझा दृष्टिकोण आने वाले दशकों में फले-फूले।”