बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है, उसके व्यवहार में कई तरह के परिवर्तन आते हैं जिन्हें सही दिशा में ले जाने के लिए माता-पिता के मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। बढ़ती उम्र में पैरेंट्स के दखल या योगदान से बच्चों को तमीज, कम्यूनिकेशन और सोशल एटिकेट्स सिखाए जा सकते हैं।
छोटे बच्चों को सही और गलत के बारे में पता नहीं होता है। ये बच्चे वही करते हैं, जो उसे आसान लगता है। चाहे वह इधर-उधर भागना हो और बिना किसी कारण के शोर करना हो या दूसरों पर चीजों को खींचना और फेंकना हो या बिना किसी कारण के दूसरे बच्चों को मारना या घूंसा मारना हो। बच्चे उन गतिविधियों को करते और दोहराते हैं जो उन्हें करना पसंद है। हालांकि, यह अभिभावकों के लिए एक बड़ी चुनौती होती है।
जब कोई बच्चा अपने पैरेंट्स की बात को नहीं सुनता या उसे इग्नोर करता है, तो माता-पिता का गुस्सा होना स्वाभाविक है, लेकिन असल में पैरेंट्स को बच्चे के प्रति कोमल और दयालु होना चाहिए और उन्हें समझाना चाहिए कि उन्हें किस तरह व्यवहार करना चाहिए।
एक आदर्श स्थिति में बच्चे को बैठकर दूसरों की बात को सुनना चाहिए और जब कोई उससे बात करता है तो उसे उछल-कूद बंद कर देनी चाहिए।
बात क्यों नहीं सुनते बच्चे : इसके पीछे कई कारक हो सकते हैं, जिनमें से ज्यादातर कारण माता-पिता की समझ पर निर्भर करते हैं। माता-पिता बच्चे के प्रति अपनी जिम्मेदारियों में इतने व्यस्त या मशगूल हो जाते हैं कि वे भूल जाते हैं कि वे एक ऐसे बच्चे के साथ व्यवहार कर रहे हैं जिसे सांसारिक मामलों की कोई समझ नहीं है।
वहीं न्यू पैरेंट्स के दिमाग में चल रहा परवरिश का तरीका उन्हें बच्चे के प्रति नरम और दयालु होने से रोकता है।
जब बच्चा बात नहीं सुनता तो क्या करें : जब आप या घर का कोई अन्य सदस्य बात करता है और उस समय बच्चा उनकी बात को इग्नोर करता है या अपने काम में ही लगा रहता है तो आप घुटनों के बल बैठकर, बच्चों से आंखों से आंखें मिलाकर बात करना शुरू कर दें। एक ही हाइट पर आकर बात करने से इंटरैक्शन में मदद मिलती है। इस तरह बच्चा आपके साथ आसानी से कम्यूनिकेट कर पाता है।
गुस्सा ना करें : जब बार-बार दोहराने पर भी बच्चे नहीं सुनते हैं, तो गुस्सा आना लाजिमी है। लेकिन आपको बच्चों के साथ बात करते हुए शांत रहना है। आपके गुस्सा करने से या तो बच्चा डर जाएगा या फिर आपसे दूर चला जाएगा।
कम्यूनिकेशन स्किल्स सिखाएं : बच्चे को आप कम्यूनिकेशन स्किल्स सिखाएं। उसे उदाहरण देकर बताएं कि किस तरह की सिचुएशन में, उसे किस तरह बर्ताव करना चाहिए और कहां पर किस तरह बात नहीं करनी चाहिए। इससे बच्चे को समझ आएगा कि जब कोई उससे बात करने आता है, तो उसे उनकी बात को सुनना है।
तारीफ जरूर करें : जब आप बच्चे से उसकी गलतियों के बारे में बात करते हैं तो जब बच्चा कुछ अच्छा करता है, तब भी उसकी तारीफ करने से चूकें नहीं। इस तरह बच्चे को ठीक तरह से सही और गलत का कॉन्सेप्ट समझ आएगा।