नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने ऐलान किया है कि वे अमेरिका के साथ स्टेट पार्टनरशिप प्रोग्राम (एसपीपी) पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे। देउबा ने सत्तारूढ़ गठबंधन के शीर्ष नेताओं को आश्वासन दिया है कि एसपीपी प्रोग्राम पर नेपाल कभी भी अमेरिका का साथ नहीं देगा। यह समझौता नेपाली सेना और अमेरिका के नेशनल गार्ड के बीच होना था। अमेरिका इस प्रोग्राम पर साइन करने के लिए नेपाल पर दबाव बना रहा था, हालांकि पीएम देउबा के इनकार के बाद यह डील लगभग खत्म हो गई है। इससे पहले मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन को लेकर भी अमेरिका और नेपाल के बीच खींचतान देखने को मिली थी। हालांकि, नेपाल के अमेरिका से दूर जाने से भारत की मुश्किलें बढ़ सकती हैं, क्योंकि इससे चीन को पांव जमानें का मौका मिल जाएगा।
देउबा ने प्रचंड और नेपाल को दिया भरोसा : देऊबा ने सत्तारूढ़ गठबंधन के सहयोगी माओवादी सेंटर के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल प्रचंड और यूनिफाइड सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष माधव नेपाल के साथ बैठक के दौरान एसपीपी प्रोग्राम पर नेपाल सरकार का रुख स्पष्ट किया। बता दें कि प्रचंड और माधव कुमार नेपाल ने पीएम देउबा से किसी भी कीमत पर एसपीपी पर हस्ताक्षर नहीं करने का आग्रह किया था।
अमेरिका यात्रा के ठीक पहले किया ऐलान : पीएम देउबा जुलाई महीने में अमेरिका की यात्रा करने वाले हैं। अमेरिका चाहता था कि इसी दौरान एसपीपी प्रोग्राम पर हस्ताक्षर कर दिए जाएं। लेकिन, देश के राजनीतिक हालात और सहयोगी पार्टियों के विरोध को देखते हुए देउबा ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं। ऐसे में नेपाल और अमेरिका के बीच तनाव और बढ़ने के आसार जताए जा रहे हैं। नेपाल की राजनीतिक पार्टियों का मानना है कि इस प्रोग्राम पर साइन करने से देश की संप्रभुता पर खतरा आ सकता है।
अमेरिका ने नेपाल पर बनाया था दबाव : नेपाल के एसपीपी प्रोग्राम में शामिल होने के लिए ताजा दबाव पिछले सप्ताह अमेरिकी सेना के प्रशांत बेडे़ के कमांडिंग जनरल चार्ल्स फ्लीन की काठमांडू यात्रा के दौरान आया। पीएम देउबा के साथ बैठक के दौरान अमेरिकी जनरल ने यह मुद्दा उठाया और साइन करने के लिए कहा। हालांकि इसी दौरान नेपाली मीडिया ने अमेरिकी प्रस्ताव के मसौदा कॉपी को प्रकाशित कर दिया, जिससे देश में विरोध की लहर तेज हो गई।
पहले भी एमसीसी कॉम्पैक्ट को लेकर भिड़ चुके हैं अमेरिका-नेपाल : अभी पिछले दिनों ही नेपाली संसद ने एमसीसी कॉम्पैक्ट को नेपाली समाज के एक धड़े के भारी विरोध के बाद भी मंजूरी दी थी। एमसीसी का विरोध कर रहे चीन समर्थक लोगों का कहना है कि यह अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति का हिस्सा है और इसी वजह से इसमें एक सुरक्षा का पहलू भी जुड़ा है। उधर, अमेरिका ने इसका खंडन किया है और कहा है कि एमसीसी पूरी तरह से विकास से जुड़ा हुआ है। अब नेपाल में कई लोग एसपीपी पर हस्ताक्षर करने के औचित्य पर सवाल उठा रहे हैं।
अमेरिका से दूर जाकर भारत को नुकसान पहुंचाएगा नेपाल? : नेपाल का अमेरिकी सहयोग से दूर जाना भारत के लिए बड़ा झटका माना जा सकता है। नेपाल के पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली ने एमसीसी समझौते को चीन के कहने पर चार साल तक टालकर रखा। माना जा रहा है कि एसपीपी समझौते को रोकने के पीछे भी चीन का ही दबाव काम कर रहा है। नेपाल ने चीन से बड़े पैमाने पर कर्ज लिया है। वहीं कई एसी परियोजनाए हैं, जिनके लिए नेपाल आज भी चीन की फंडिंग पर निर्भर है। ऐसे में अगर नेपाल में चीन हावी होता है तो भारत की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।