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November 22, 2024
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अमेरिका से दया और करुणा की ‘भीख’ क्यों मांग रहा तालिबान, क्या शुरू हो गए वो बुरे दिन?

अफगानिस्तान पर कब्जा जमाने के चार महीनों के अंदर ही तालिबान की दुर्दशा हो गई है। उसके पास अफगान कर्मचारियों को वेतन देने और सरकारी काम के लिए पैसे नहीं बचे हैं। ऐसी स्थिति में कभी अमेरिका को खुलेआम धमकी देने वाला तालिबान अब दया और करुणा की भीख मांगने पर मजबूर हो गया है। तालिबान ने अमेरिका और पश्चिमी देशों से अनुरोध किया है कि वे जब्त किए हुए अफगानिस्तान के 10 बिलियन डॉलर जारी करके दया और करुणा दिखाएं।
अमेरिका से फंड पर लगी रोक हटाने की अपील की : एक दुर्लभ इंटरव्यू में बोलते हुए अफगानिस्तान के इस्लामिक अमीरात में विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी ने कहा कि इस धन से देश के उन लाखों नागरिकों को मदद मिलेगी जिनको इसकी सख्त जरूरत है। उन्होंने यह भी दावा किया कि अफगानिस्तान के नए तालिबान शासक लड़कियों और महिलाओं के लिए शिक्षा और नौकरियों के लिए सैद्धांतिक रूप से प्रतिबद्ध हैं।
सभी देशों से अच्छे संबंध चाहता है तालिबान : एसोसिएटेड प्रेस से बात करते हुए तालिबानी विदेश मंत्री ने कहा कि नई सरकार सभी देशों के साथ अच्छे संबंध चाहती है और अमेरिका के साथ कोई समस्या नहीं है। उन्होंने वाशिंगटन और अन्य देशों से उस धन को जारी करने का आग्रह किया, जो 15 अगस्त को तालिबान के सत्ता में आने के बाद जब्त कर लिया गया था। तालिबान के कब्जे के पहले ही अफगानिस्तान प्रति व्यक्ति आय के मामले में दुनिया के सबसे गरीब देशों में शामिल था।
विदेश मंत्री बोले- प्रतिबंधों का कोई फायदा नहीं होगा : मुत्ताकी ने काबुल में तालिबान के विदेश मंत्रालय में दिए गए इंटरव्यू में कहा कि अफगानिस्तान के खिलाफ प्रतिबंधों का कोई फायदा नहीं होगा। अफगानिस्तान को अस्थिर बनाना या अफगान सरकार को कमजोर करना किसी के हित में नहीं है। मुत्ताकी इससे पहले भी कई बार फंड पर लगे प्रतिबंधों को हटाने के लिए अमेरिका और बाकी पश्चिमी देशों से अनुरोध कर चुके हैं।
अमेरिका बोला- अभी प्रतिबंध हटाने का इरादा नहीं : अक्टूबर में अमेरिका के डिप्टी ट्रेजरी सेक्रेटरी वैली एडेयमो ने एक अमेरिकी सीनेट समिति को बताया कि उन्होंने ऐसी कोई स्थिति नहीं देखी जिसमें तालिबान को फंड तक पहुंचने की अनुमति दी जाएगी। दुनियाभर के कई दूसरे देश सीधे तालिबान के हाथ में पैसा सौंपने से इनकार कर चुके हैं। इसके बावजूद भारत, अमेरिका समेत कई दूसरे देश अफगान लोगों की मदद के लिए विदेशी सहायता एजेंसियों के जरिए राहत सामग्री भेज रहे हैं।
विदेशों से अफगान सरकार को मिलता था पैसा : पिछले 20 साल से अफगानिस्तान की नागरिक सरकार को अमेरिका समेत कई देशों से भारी मात्रा में पैसा दिया जाता था। अब तालिबान के कब्जे के बाद अमेरिका ने अपने देश के बैंकों में जमा अफगानिस्तान सरकार के सभी फंड को प्रतिबंधित कर दिया है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि तालिबान अफगानिस्तान और अर्थव्यवस्था को कैसे बचाएगा।
कर्मचारियों को वेतन देना सबसे बड़ी मुसीबत : नेब्रास्का विश्वविद्यालय ओमाहा में अफगानिस्तान अध्ययन केंद्र में आर्थिक नीति विश्लेषक हनीफ सूफीजादा ने कहा कि तालिबान के सामने सबसे बड़ी चुनौती लाखों सरकारी कर्मचारियों को वेतन देने की है। ऐसे में यह समझना होगा कि आखिर तालिबान कैसे इस बड़ी मुसीबत से पार पाएगा। अगर 20 साल पहले के तालिबान शासन की बात करें तो 1990 के दशक में, अफगानिस्तान एक बहुत ही अलग देश था।
तालिबान की पिछली सरकार का बजट कितना था? : उन्होंने कहा कि तब अफगानिस्तान की जनसंख्या दो करोड़ से भी कम थी। तालिबान कुछ सेवाओं के लिए तब अंतरराष्ट्रीय सहायता समूहों पर निर्भर था। उदाहरण के लिए, 1997 में तालिबान सरकार के पास केवल 100000 डॉलर का बजट था। इतने पैसे से तो इस समय सरकारी अधिकारियों के वेतन के लिए बमुश्किल ही जुगाड़ की जा सकती है। पूरे देश की प्रशासनिक और विकास की जरूरतों को तो छोड़ ही दें।
अमेरिका समेत कई देशों से मिली भारी वित्तीय मदद : 2001 के बाद से अफगानिस्तान में हुए अधिकांश विकास और इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण का खर्च अन्य देशों से आया है। अमेरिका समेत कई बड़े देशों ने पिछले 20 साल के दौरान सरकार के गैर-सैन्य खर्च का लगभग 75 फीसदी हिस्सा खुद चुकाया। अमेरिका ने तो 2001 से आर्थिक और बुनियादी ढांचे के विकास पर 5.8 अरब डॉलर खर्च किए हैं। बाकी का खर्चा अफगान सरकार को खनिज, सीमा शुल्क, कर, पासपोर्ट, दूरसंचार और सड़कों जैसी सेवाओं से मिल जाता था।

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