अमेरिका ने अफगानिस्तान को सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान के हवाले कर दिया। अमेरिका को लगा कि हमारे लक्ष्य पूरे हो गए हैं और इस जंग को जीता नहीं जा सकता है। उसने वहां से निकलना ही उचित समझा। अमेरिका ने अफगानिस्तान से वापसी का जो तरीका निकाला, वह बहुत भद्दा रहा। इससे बहुत नुकसान हो गया। लोगों को परेशानी हुई। इससे भगदड़ मच गई। यह किसी की जीत नहीं है। यह कहना है अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ कमर आगा का।
आगा ने नवभारत टाइम्स ऑनलाइन से बातचीत में कहा कि अमेरिका ने दोहा में जो डील की, उससे अशरफ गनी सरकार कमजोर होती गई और तालिबान मजबूत होते गए। तालिबान के कहने पर अमेरिका ने दबाव डालकर 5000 तालिबान कैदियों को छोड़वा दिया। इससे तालिबान और मजबूत हो गए। सरकारी अधिकारियों की हत्या होने लगी। अमेरिका ने तालिबान से डील से पहले पाकिस्तान के साथ डील किया। पाकिस्तान के साथ क्या डील हुई, यह किसी को पता नहीं है लेकिन माना जा रहा है कि एफएटीएफ के ग्रे लिस्ट से पाकिस्तान निकल सकता है। इससे उसके लोन का रास्ता साफ हो सकता है।
उन्होंने कहा, ‘लोग घबराए हुए हैं और उसी का असर काबुल एयरपोर्ट पर दिखाई दे रहा है।’ तालिबान एक गुट नहीं है बल्कि कई गुटों का समूह है। सारे गुट यह मानेंगे या नहीं, यह अभी तय नहीं है। तालिबान एक पश्तून मिलिशिया है जो केवल 42 फीसदी है लेकिन ये सबसे शक्तिशाली हैं। दूसरे गुट ताजिक, हजारा आदि हैं। तालिबान को अभी पूरी तरह से पश्तूनों की भी मदद नहीं मिली है। अफगानिस्तान में राष्ट्रवाद बढ़ रहा है और झंडे को लेकर अभी हुए विरोध को हमने देखा है। लड़कियां तालिबान का विरोध कर रही हैं।
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