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अदन की खाड़ी में ‘अदृश्य’ हथियार टेस्ट कर रहा अमेरिका

अमेरिकी नौसेना अरब सागर के नजदीक अदन की खाड़ी में हाई एनर्जी लेजर वेपन सिस्टम का टेस्ट कर रही है। यह सिस्टम इतना खतरनाक है कि दुश्मनों की मिसाइल, जहाज, ड्रोन और शिप को काफी दूर से नष्ट कर सकता है। अमेरिकी नौसेना की नेवल फोर्सेज सेंट्रल कमांड ने ऐलान किया है कि उसने एक नई उच्च-ऊर्जा लेजर हथियार प्रणाली का सफल परीक्षण किया है। अदन की खाड़ी में इस हथियार के परीक्षण के भी रणनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं।
अमेरिकी नौसेना ने जारी किया बयान : अमेरिकी नौसेना ने कहा कि एम्फीबियस ट्रांसपोर्ट डॉक शिप यूएसएस पोर्टलैंड (एलपीडी 27) ने अदन की खाड़ी में तैनाती के दौरान 14 दिसंबर को एक उच्च-ऊर्जा लेजर हथियार प्रणाली का परीक्षण किया। इस दौरान, पोर्टलैंड पर तैनात सॉलिड स्टेट लेजर- टेक्नोलॉजी म्यूटेशन लेजर वेपन सिस्टम डेमोस्ट्रेटर (LWSD) मार्क-2 ने सफलतापूर्वक सतह पर मौजूद एक स्थिर लक्ष्य को नष्ट कर दिया।
2018 से यूएसएस पोर्टलैंड पर तैनात है लेजर हथियार : यूएसएस पोर्टलैंड को 2018 में लेजर हथियार प्रौद्योगिकी को टेस्ट करने के लिए चुना गया था। यह पोत अमेरिकी नौसेना के 11वीं समुद्री अभियान इकाई की एसेक्स एम्फीबियस रेडी ग्रुप का एक हिस्सा है। इसमें एम्फीबियस असॉल्ट शिप यूएसएस एसेक्स (एलएचडी 2), डॉक लैंडिंग जहाज यूएसएस पर्ल हार्बर (एलएसडी 52) शामिल है। वर्तमान में इस ग्रुप की तैनाती अदन की खाड़ी से फारस की खाड़ी तक गश्त लगाने के लिए की गई है।
मिसाइलें, ड्रोन, फाइटर जेट और हेलिकॉप्‍टर होंगे खाक : इसकी मदद से किसी ड्रोन विमान को पलक झपकते ही मार गिराया जा सकता है। अमेरिका के इस नए हथियार से उसकी मारक क्षमता कई गुना बढ़ गई है। आमतौर पर ये हथियार कई तरह के फाइबर लेजर पर आधारित होते हैं और बाद में एक बीम से किरणे निकलती हैं तथा दुश्‍मन खाक हो जाता है। इस नए लेजर वेपन में कई शीशे लगाए गए हैं जो आपस में जुड़े हुए हैं।
इस टेस्ट का ऐलान नेवी के पैसिफिक फ्लीट ने किया था। साल की शुरुआत में चीन के नेवी डिस्ट्रॉयर ने अमेरिका के नीव मैरिटाइम पट्रोल एयरक्राफ्ट को लेजर बीम से निशाना बनाया था। पीटरकिन ने मंगलवार को एक पॉडकास्ट के दौरान कहा कि डायरेक्टेड एनर्जी के क्षेत्र में सहयोग के लिए स्वर्णिम दौर चल रहा है और मिलिट्री की सभी शाखाएं लेजर हथियार तैनात करने और उनकी शक्ति बढ़ाने के तरीकों पर काम कर रही हैं। हालांकि, पेंटागन में कई लोग अभी भी डायरेक्टेड एनर्जी वेपन्स को साइंस फिक्शन ही मानते हैं। इस पर पीटरकिन का कहना है कि जंग में जाने वाले लोग जब इन हथियारों को हाथ लगाएंगे, इस्तेमाल करेंगे और काम करता देखेंगे, तो उन्हें भरोसा होगा।
ODIN का इस्तेमाल हवा में किसी मिसाइल या एयरक्राफ्ट को मार गिराने के लिए बल्कि ‘डैजल’ के जरिए लेजर बीम से रेकी या निशाना लगाने आ रहे ड्रोन या मिसाइल के सिस्टम में रुकावट पैदा करने के लिए किया जाएगा। पीटरकिन का कहना है कि ODIN को Flight II Arleigh Burke-class युद्धपोत जैसे Dewey, San Antonio-class ट्रांसपोर्ट डॉक और Littoral जंगी जहाजों पर लगाया जा सकता है। विमानवाहक पोतों पर भी लेजर लगाए जाने पर चर्चा की जा रही है।
नेवी ड्रोन्स और मिसाइलों पर भी ध्यान दे रही है। ईरान की मिलिट्री मानवरहित एयरक्राफ्ट की मदद से अमेरिका के नौसैनिक बेड़ों के नजदीक आकर रेकी कर चुका है और खतरनाक ऐंटी-शिप मिसाइलें भी रखता है। वहीं, पैसिफिक में चीन के पास लंबी रेंज की ऐंटी-शिप मिसाइलें हैं जिनसे अमेरिका के बेड़े को बड़ा खतरा है। पीटरकिन का कहना है कि नेवी ऐसे लेजर ( Integrated Optical-dazzler के साथ High Energy Laserand Surveillance (HELIOS) और Laser Weapons System Demonstrator (LWSD) पर भी काम कर रहा है जो मिसाइल को इंटरसेप्ट कर सकें। दोनों की पावर 150 किलोवाट होगी।
इससे पहले मई में USS पोर्टलैंड डॉक शिप लेजर टेस्टिंग करता देखा गया था। इसमें फर्स्ट सिस्टम-लेवल की हाई-एर्जी क्लास सॉलिड-स्टेट लेजर का इस्तेमाल किया गया था। इसने हवा में ड्रोन एयरक्राफ्ट को मार गिराया था। इससे पहले फरवरी में गुआम से 380 मील पश्चिम की ओर चीन की ओर से अमेरिकी क्राफ्ट को निशाना बनाया गया था। इसके बाद अमेरिका की नेवी ने कहा था कि लेजर के इस्तेमाल से क्रू और मरीन सैनिकों को नुकसान हो सकता है। साथ ही शिप और एयरक्राफ्ट सिस्टम भी खराब हो सकते हैं।
अदन की खाड़ी में चीन, रूस, ईरान की टेंशन बढ़ेगी : कच्चे तेल के निर्यात के अलावा दुनिया का आधे से ज्यादा समुद्री व्यापार अदन की खाड़ी से होकर किया जाता है। इसी रास्ते पर आगे लाल सागर और उसके आगे स्वेज नहर भी स्थित है। इस नहर से हर दिन सैकड़ों कार्गो शिप अफ्रीका का चक्कर लगाए बिना एशिया से यूरोपीय देश और अमेरिका की ओर जाते हैं। ऐसे में अगर अमेरिका इस रास्ते पर नियंत्रण हासिल कर लेता है तो चीन में तेल का अकाल पड़ सकता है। वहीं ईरान और रूस भी महत्वपूर्ण रणनीतिक स्थान पर अमेरिका के हावी होने से एशिया में अपना प्रभाव खो सकते हैं।

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